शनिवार, 14 अप्रैल 2018

अनेक बीमारियों को भी बताती है नाभि


   अनेक बीमारियों को भी बताती है नाभि

नाभिके बिना मनुष्य की कल्पना तक नहीं की जा सकती। उदर (पेट) पर स्थित नाभि बहुत ही रहस्यमयी है। माता के गर्भ में नवजात बाल का सबसे पहले नाभि केन्द्र ही विकसित होता है। गर्भ के बाहर आते ही सर्वप्रथम माता के शरीर से शिशु को जोड़ने वाली उस नली का संबंध विच्छेद करना होता है जो शिशु की नाभि से जुड़ी होती है। अगर किसी कारणवश जन्म लेते ही नाभि को माता से जोड़ने वाली नली को शीघ्र ही काटा जाए तो बालक विकालंग भी हो सकता है। नाभि का अपने स्थान पर रहना स्वस्थ्य का प्रतीक होता है किन्तु आजकल की जीवन पध्दति के कारण अधिकांश व्यक्तियों का नाभिकेन्द्र अपने स्थान पर प्रायः नहीं होता। लम्बे समय तक ऐसी स्थिति रहने पर जी मिचलाने लगता है, भोजन से अरूचि हो जाती है, पेट में मरोड़ तथा वायु की शिकायत हो जाती है। कई बार कब्ज एवं दस्त की स्थिति भी उत्पन्न हो जाती है। नाभि के अपने केन्द्र से हट जाने पर हृदय में जलन, खांसी, अनिद्रा, तनाव, महिलाओं में मासिक असंतुलन, शरीर के निचले भाग में पीड़ा, आंतों में समस्या के साथ ही लिवर, पित्ताशय तथा दाहिनी किडनी भी प्रभावित होती है। इससे शरीर के ऊपरी बायें भाग पर दर्द एवं तनाव की अनुभूति भी हो सकती है। इसके कारण पैन्क्रियाज, जठर, प्लीहा, तक रोगग्रस्त हो सकते हैं। लम्बर क्षेत्र के विकेन्द्रकरण के कारण दाहिने पैर में दर्द हो सकता है। शरीर का दाहिना भाग प्रभावित होता है तथा किडनी तथा आंतों में खिंचाव, कड़ापन तथा दर्द की स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है। नाभि के केन्द्र से हट जाने के कारण असहजता, मानसिक समस्याएं, बुरे स्वप्न एवं मूत्राशय संबंधी समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती हैं। स्वस्थ नाभि का आकार गोलाकार, मांसपेशियां सुडौल तथा केन्द्र में स्पन्दन करने वाला होता है किन्तु नाभि अगर केन्द्र में स्थित न हो, त्वचा में लचीलेपन की बजाय कठोरता हो, नाभि सक्रिय एवं सजग न हो, नाभि एक तरफ खिंची हुई, उभरी हुई अथवा दबी हुई हो या उसका आकार स्थायी रूप से बदल गया हो तो यह उस व्यक्ति में लम्बे समय से किसी न किसी रोग की तरफ इंगित करता है किन्तु जब परिस्थितियां अनियंत्रित हो जाता हैं, तब रोग के लक्षण बाहर दिखायी देने लगते हैं। नाभि को प्राण ऊर्जा का केन्द्र बिन्दु माना जाता है, क्योंकि यहां से प्राण
ऊर्जा का वितरण, नियंत्रण एवं संतुलन होता है। इसी कारण जब नाभि अपने स्थान से खिसक जाता है, तो सभी अंगों को मिलने वाली प्राण ऊर्जा का संतुलन बिगड़ने लगता है। किसी को आवश्यकता से अधिक तो किसी को आवश्यकता से बहुत कम ऊर्जा मिलने लगती है। फलस्वरूप उन अंगों की कार्यप्रणाली असंतुलित हो जाती है और अलग-अलग लक्षण प्रकट होकर रोग के नामों से पुकारा जाने लगता है। इस असंतुलन को ठीक करते ही रोग नष्ट हो जाते हैं। नाभि का खिंचाव अनेक प्रकार से हो सकता है। नाभि बांयी तरफ खिंचकर जा सकती है। इसी प्रकार नाभि का खिचांव दाहिनी ओर, ऊपर की ओर, नीते की ओर, बाएं पुठ्ठे की तरफ, दाहिने पुठ्ठे की तरफ, आवरीज की तरफ, लिवर की तरफ तथा पैन्क्रियाज या तिल्ली की तरफ हो जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार कैंसर हो या मधुमेह, अस्थमा हो या हृदयाघात, गुर्दे की शिकायत हो या अचेतन की अवस्था, सभी में नाभि के केन्द्र को परखने के बाद ही उपचार करना चाहिए। नाभि के केन्द्र में स्थिर न रहने के कारण ही ये असाध्य रोग भी पनपते हैं। नाभि को केन्द्र में लाने की अनेक विधियां अपने देश में प्रचलित हैं। वे सभी विधियां इतनी सरल हैं कि इसे अपने घर पर ही किया जा सकता है। नाभि का
अपने केन्द्र में स्पन्दन करना स्वस्थ नाभि का प्रतीक है। अगर केन्द्र का स्पन्दन नाभि स्थल पर न हो, ऊपर-नीचे, दाएं-बाएं हो तो इस नाभि का खिसकना या पेचुटि कहा जाता है। नाभि को केन्द्र में लाने की विधि किसी अच्छे जानकार से सीख लेना हितकारी रहता gS A ukHkh ls mipkj dbZ fpfdRlk i)fr;ksa esa fdlh u fdlh :i esa izpfyr jgh gS A pkbZuht fpfdRlk esa phuh”kkWx uke ls ,ao gekjs vk;qosZn fpfdRlk esa ukHkh Lianu ls jksx funku rFkk ,D;qiapj fpfdRlk i)fr esa usosy ,D;qiapj uke ls lfn;ksa ls lQyrkiwoZd mi;ksx dh tk jgh gS A
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