गुरुवार, 6 दिसंबर 2018

नाभी सुखानुभूति उपचार


                       नाभी सुखानुभूति उपचार



सुखानुभूति उपचार से मानसिक रोगों का उपचार :- चीन व जापान एंव अब तो यह कहने में किसी प्रकार का संकोच नही है कि संमृद्धशाली राष्‍ट्रों में सुखानुभूति उपचार ने अपने सफलता के झंडे गांणने शुरू कर दिये है । सुख के अनुभव से कई प्रकार के मानसिक रोगों का उपचार किया जा सकता है , जिसमें पागलपन, हिस्‍टीरिया, मिरगी, तनाव, हत्‍या,या आत्‍महत्‍या का विचार, फोबिया ,आदि से लेकर अब तो शारीरिक बीमारीयों का उपचार भी किया जाने लगा है एंव इसके आशानुरूप परिणाम भी सामने आ रहे है । सुख के अनुभव से हमारे शरीर में सेरोटोनिन एंव डोपामाइन हार्मोस सक्रिय होते है, इससे हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है । अब सवाल उठता है कि सुखानुभूति उपचार कैसे किया जाये । मनोवैज्ञानिकों ने पाया कि हमारे शरीर की छोटी से छोटी कोशिकाओं में सुख की अनुभूति को ग्रहण करने की क्षमता है ,इस ग्रहण किये जाने वाली अनुभूति को वह मस्तिक को भेजता है । जिससे भावनात्‍मक हार्मोंस सेरोटोनिन एंव डोपामाइन सक्रिय हो जाते है । इस उपचार प्रक्रिया में शरीर के सबसे संवेदन शील हिस्‍से को सहलाया जाता है जिसमें प्रमुख रूप से नाभी है क्‍योकि नाभी में 72000 नाडीयों का केन्‍द्रक पाया जाता है । इस छोटी सी नाभी को सहलान के लिये किसी बारीक बस्‍तु का प्रयोग किया जाता है एंव पूरे पेट पर पक्षियो के पंख से सहलाया जाता है  । जापान व चीन में पक्षियों के पंख एंव पेंसिल जैसी नुकीली वस्‍तु को धीरे धीर महिन स्‍पर्श कराया जाता है तथा रोगी को ऑख बन्‍द कर सोने का आदेश दिया जाता है रोगी नाभी के अन्‍दर हो रहे स्‍पर्श की संवेदना को महशूस करता है एंव उसे सुख की अनुभूति होती है भावनात्‍मक हार्मोस के सक्रिय होते ही वह आनन्‍द में खोता चला जाता है । मानसिक रोगीयों में जो मानसिकता उसके मस्तिष्‍क में स्‍टोर होती है (जिसकी वजह से वह मानसिक रोग का शिकार हुआ है) वह इस सुखानुभूति की वजह से धीरे धीरे लुप्‍त होने लगती है । इस आनन्‍द की अनुभूति पुराने स्‍टोर को खत्‍म कर देती है एंव नई इस आनन्‍द की अनुभूति उसके मस्तिष्‍क में स्‍टोर हो जाती है, इससे उसके शरीर मे एक तो रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ जाती है । वह इस उपचार के बाद अपने आप को स्‍फूर्तिवान , तरोताजा महसूस करने लगता है । पहले उसे जो शिकायेते थी जैसे तनाव ,भूख न लगना ,चिडचिडापन , किसी भी प्रकार का डर , हिस्‍टीरिया ,मिर्गी ,पागलपन ,हत्‍या या आत्‍महत्‍या का विचार , कामचोरी की प्रवृति , याददास्‍त का कम होना ,आदि में इस उपचार से काफी लाभ होता है ।


मानसिक बीमारीयॉ ही नही बल्‍की शारीरिक कई प्रकार की बीमारीयों में इसके बडे ही अच्‍छे परिणाम देखने को मिल रहे है । इस उपचार को नाभी संवेदना उपचार भी कहॉ जाता है ।

नाभी जड से सौन्द्धर्य समस्याओं का निदान :- नाभी पर पाई जाने वाली जड से समस् प्रकार के सौन्द्धर्य समस्याओं का उपचार सफलता पूर्वक बिना किसी दवा दारू के किया जा रहा है और इसके बडे ही अच्छे एंव सुखद परिणाम भी सामने रहे है नाभी की जड याने नाभी के अन्‍दर गहराई में परिक्षण करने पर एक नलिका का आभास होता है यही है नाभी जड ।
नाभी जड का परिक्षण:- नाभी जड, नाभी के अन्‍दर पाई जाती है, इसकी पहचान इस प्रकार से करते है, जिसकी नाभी की जड का परिक्षण करना हो उसे सीधा स्‍टूल पर बैठा दे इसके बाद नाभी से ऊपर अपने दाहने हाथ को इस प्रकार रखे की चारों अंगूलिया नाभी से दो या तीन इंच की दुरी पर हो एंव अंगूठा नाभी के नीचे दो या तीन इंच की दूरी पर हो अब अपनी हथेली को प्रेशर देने हुऐ इस प्रकार दबाये कि नाभी अंगुलियों के बीच में रहे एंव आप के पंचे नाभी के नीचे बाली जगह को इस प्रकार से दबाये जिससे आप की अंगुली और अंगूठा जिस स्‍थान पर मिलेगा वहॉ पर दबाने पर आप को किसी ऐसी वस्‍तु का आभास होगा जैसा कि वह स्‍थान नाभी से जुडी हुई है इसे ही नाभी जड कहते है ।

चीन ,जापान , मिस्‍त्र ,मियामी एंव ऐसे कुछ राष्‍ट्र या जहॉ सौन्‍द्धर्य ही सब कुछ है , वहॉ विशेषकर युवा महिलाओं में सौन्‍द्धर्य समस्‍याओं का उपचार नाभि जड से ही किया जाता  है और यह उपचार बडे बडे मिसाज पार्लर या ब्‍युटी क्‍लीनिक या नीशेप क्‍लीनिक ,ची नी शॉग क्‍लीनिक के साथ बडे बडे फाईव स्‍टार होटलों में उपलब्‍ध है । इसके बडे ही आश्‍चर्यजनक आशानुरूप परिणामों ने इसे खॉस कर महिलाओं को इस उपचार की तरफ आकृषित किया है । चूंकि महिलाओं में सौन्‍द्धर्य के प्रति विशेष आकृषण होता है  । महिलाओं में कई प्रकार की समस्‍यायें होती है, जिससे उनका सौर्न्‍दय नष्‍ट ही नही हो जाता, बल्‍की वे एक हीन भावना का शिकार भी हो जाती है । जैसे एक निश्चित उम्र के बाद यदि स्‍त्रीयों के स्‍त्रीसुलभ अंगों का विकाश न हो तो आप कल्‍पना करे कि वह महिला कैसी दिखेगी । इसे थोडा सा और स्‍पष्‍ट करने की आवश्‍यकता है स्‍त्री सुलभ अंग से तात्‍पर्य उसके ऐसे अंग जो उसे पूर्ण स्‍त्रीत्‍व प्रदान करे , शरीर के आकार प्रकार उसके उतार चढाव आदि जैसे स्‍तन एंव कूल्‍हे का उम्र के हिसाब पूर्ण विकसित होना कमर पतली पेट मसल्‍स युक्‍त झील की तरह से जिसमें गहरी आकृषक नाभी हो जो किसी भॅवर कि तरह से दिखे । रंग गोरा ऑखों में चमक घने लम्‍बे बाल एक स्‍त्री को पूर्ण यौवन (कामनीयता जिसे सैक्‍सी , या हॉट कहते है) प्रदान करते है ।


सौन्‍द्धर्य सम्‍बधित समस्‍याओं का निदान नाभी चिकित्‍सा से :-सौन्‍द्धर्य सम्‍बधित बहुत सी समस्‍याओं का उपचार नाभी जड एंव नाभी चिकित्‍सा से बिना किसी बडे परिक्षणों एंव दवा दारू के घर पर ही किया जा सकता है । आवश्‍यकता है नाभी चिकित्‍सा को समक्षने की जो इसके अध्‍ययन से आसानी से समक्षा जा सकता है कुछ तकनीकी समस्‍याये यदि है तो उसका निदान इस चिकित्‍सा के ज्ञाता से प्रेक्टिकल अभ्‍यास लिया जा सकता है वैसे इसके आडियों वीडियों नेट पर उपलब्‍ध है एंव हमारे प्राय:प्राय: प्रत्‍येक लेखों के साथ इनके जानकारीयों की साईड दी होती है उससे भी आप जानकारीयॉ हॉसिल कर सकते है ।
1- त्‍वचा मुलायम चमकदार गोरी बनाने के लिये :- त्‍वचा को गोरी मुलायम स्निग्‍ध बनाने की कई विधियॉ प्रचलन में है एंव इसके बडे ही अच्‍छे परिणाम में सामने आये है । परन्‍तु यहॉ पर नाभी चिकित्‍सा के उपचार की चर्चा चल रही है इसलिये हम इसी विषय पर चर्चा करते है त्‍वचा को मुलायम चमकदार गोरी बनाने के लिये सुखानुभूति उपचार लिया जा सकता है इससे आप के त्‍वचा के सैल्‍स एंव संसूचना प्रणाली के साथ आप की प्रतिरोधक क्षमता बढेगी प्रिरेडिकल्‍स एंव मृत कोशिकायें झड जाती है  उनकी जगह पर नई कोशिकायें बनने लगती है  मन प्रसन्‍न एंव तनाव कम होता , शरीर के रस रसायन संतुलित होने लगते है ।
(अ) बायवेटर से मिसाज लेना :- बायवेटर मशीन से पेट का मिसाज करना चाहिये यह मिसाज नाभी के चारो ओर गोल धुमाते हुऐ करते जाये एंव नाभी पर पॉच छै: मिनट बायवेटर मशीन को रोके इससे आप की ऑतों के मिसाज होने से रस रसायन का संतुलन तो ठीक होता ही है साथ ही आप के पेट पर शरीर के समस्‍त आंतरिक महत्‍वपूर्ण अंग होते है ,कई अंग जिनमें शामिल है संसूचना तंत्र जो कभी कभी सुसप्‍तावस्‍था में आने से निष्‍क्रिय हो जाते है । इस मिसाज से वे पुन: सक्रिय हो जाते है । इससे पाचन तंत्र तथा शरीर के अन्‍य आंतरिक अंग अपना कार्य सुचारू रूप से करने लगते है । इसका प्रभाव त्‍वचा व हमारे प्रत्‍येक सैल्‍क पर होता है ।

पी एच-7 (अम्‍ल एंव क्षार)


अम्‍ल एंव क्षार का पी एच-7 होने पर शारीर का रसायनिक संतुलन सही होता है ,पीएच-7 से अधिक होने पर क्षारीय एंव कम होने पर अम्‍बली होता है । अम्‍बलीयता के बढने पर त्‍वचा खुरदरी एंव रंग सावला होना शुरू हो जाता है अम्‍ल व क्षार की अधिकता या कमी का परिणाम शारीरिक रसायनिक घटकों में असमानता उत्‍पन्‍न तो करती ही है साथ ही अम्‍बली या क्षारीय माध्‍यमों में होने वाले वेक्‍टेरियाजनित बीमारीयों की संभावनाये बढ जाती है । क्षय रोग फेफडों के रोग व कैसर त्‍वचा खुरदरी उस पर दॉग धब्‍बे मुंहासे ब्‍लैक हैड त्‍वचा का रग काला होना जैसी बीमारीयों में शारीर में अम्‍ल का स्‍तर बढ जाता है
अम्‍लीयता क्षारीयता का परिक्षण :- नाभी मे जो गंध होती है अम्‍बलीय या खटटी ,इसके मैल की परत को निकाल कर उसे साफ पानी में घोलकर लिटमस पेपर पर डालने पर लिटमस पेपर का रंग नीला हो जाता है तो समक्षिये की आप का पी0 एच0 अम्‍बलीय है  
 क्षार के स्‍तर के अधिक बढने पर  कडुवी सी गंध आती है तथा इसकी परत का परिक्षण करने पर लिटमस पेपर लाल हो जाता है ।
जानकार नाभी चिकित्‍सक नाभी पर पाये जाने वाले इस मैल का परिक्षण विभिन्‍न विधियों से कर बीमारी का पता आसानी से लगा लेते है ।  जैसे यदि नाभी धारी के मध्‍य पीला रंग है तो उसे पित्‍त से सम्‍बन्धित बीमारीयॉ या फिर पीलियॉ जैसा रोग होगा , ठीक इसी प्रकार यदि नाभी धारीयों का रंग अत्‍यन्‍त लाल है तो उसे रक्‍त विकार की शिकायत हो सकती है । नाभी धारीयों के मध्‍य सफेद रग का होना वात रोग या नसों से सम्‍बन्धित बीमारीयों का दृशाता है । नाभी में खटटी गंध आने पर रोगी अपच तथा अम्‍ल्‍ा रोग का शिकार होता है  
विधि :- सर्वप्रथम पूरी त्‍वचा को स्प्रिट या अलकोहल के कॉर्टन से अच्‍छी तरह से साफ करे जैसे ही आप स्प्रिट या अलकोहल को त्‍वचा पर लगाते है आप की त्‍वचा एकदम ठंडी हो जायेगी एंव अलकोहल या स्प्रिट मृत कोशिकाओं को बाहर निकालने के लिये उत्‍तेजित करता है । इसके बाद यदि आप का पी0एच0 अम्‍बलीय है तो एक निब्‍बू के रस में खाने के सोडा लगभग एक चम्‍मच मिला कर उसे अच्‍छी तरह से घोल ले इसके बाद उसे हथेलीयों से पूरे शरीर में लगा कर छोड दीजिये । यदि आप का शरीर क्षारीय है तो आप खाने के सोडा का उपयोग न करे । इसे थोडी देर तक लगा रहने दे इसके बाद इसे पानी से धोकर इस प्रकार से निकाले ताकि खाने का सोडा पूरी तरह से साफ हो जाये । अब अन्‍तिम चरण में आप    शुद्ध ग्‍लीसरीन को पूरी त्‍वचा पर लगाना है । इसे भी थोडी देर के लिये लगा कर छोड दीजिये , इसके बाद आप गुलाब जल में थोडी सी हल्‍दी को मिलाकर उसका पेस्‍ट बनाये इस  पेस्‍ट में यह ध्‍यान रखे कि यह गीला अधिक होना चाहिये फिर इसे हथेली पर लेकर जहॉ जहॉ ग्‍लीसरीन लगाया था इस प्रकार से लगाते हुऐ धीरे धारे रगडते जाये इस प्रकार के रगडने से आप के शरीर से मैल की परते निकलती जायेगी । मृत्‍ा कोशिकाये निकलने से नयी कोशिकाओं को बनने के लिये रास्‍ता साफ हो जायेगा ।
इसे उपचार को आप ने मात्र तीन चार बार ही कर लिया तो आप स्‍वयम देख कर हैरान रह जायेगी कि आप की त्‍वचा मुलायम स्निग्‍ध चमकदार हो गयी है ।
अब गोरी त्‍वचा के लिये आप को ग्‍लीसरीन में बर्बेरिस अक्‍वाफोलियम दोनो बराबर मात्रा में मिला कर उपयोग करना है । या आप रात्री में पूरे शरीर में बर्बेरिस अक्‍वाफोलियम को पानी में मिला कर या ऐसे ही लगा सकती है साथ ही आप को नाभी में इसकी दो चार बूंदे इस प्रकार से लगाना है ताकि नाभी में यह दवा लम्‍बे समय तक बनी रहे इसलिये किसी कॉर्टन को भिगो कर भी इसका उपयोग कर सकते है । इसके कुछ दिनों को प्रयोग से आप देखेगे कि आप की त्‍वचा गोरी स्निग्‍ध मुलायम चमकदार हो जाती है ।
                       आवश्‍यक सूचना  
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