रविवार, 19 फ़रवरी 2017

नाभी को सुन्‍दर आकार देना

                        नाभी को सुन्‍दर आकार देना           
    
 आज के इस फैशन के दौर में जहॉ हम सभी उपगृह संस्‍कृति की वजह से सारी दुनियॉ के नये नये फैशन से जुड चुंके है । हर एक नया फैशन किसी महामारी की तरह से युवा वर्ग को अपना शिकार बना रहा है । आज महिलाओं में खॉस कर युवा महिलाओं में नाभी प्रर्दशन का फैशन तेजी से बढता जा रहा है । चूंक‍ि गहरी गोल नाभी का आकृषण इतना मनमोहक होता है कि उससे नजरे हटाने को मन ही नही करता । आज से नही बल्‍की सदियों से महिलाओं की गहरी गोल नाभी आकृषण का केन्‍द्र रही है परन्‍तु  हर महिला की नाभी सुन्‍दर गहरी नही होती ,कुछ महिलाओं की नाभी तो इतनी खराब किसी धॉव के जख्‍म की तरह से होती है कि देखते ही धिन आती है , इसी प्रकार से कुछ महिलाओं की नाभी डण्‍टल की तरह से निकली हुई होती है ,वही कुछ महिलाओं की नाभी सकरी कम गहरी होती है । इस प्रकार की नाभी देखने में खराब तो दिखती है बल्‍की सुन्‍दर से सुन्‍दर महिला के आकृषण को भी कम कर देती है । इस प्रकार की नाभी को सुन्‍दर गहरा समय रहते बनाया जा सकता है वो भी बिना किसी चीर फॉड या आपरेशन के इस प्रकार की नाभी को नेवल स्प्रिंग ,नेवल कार्क या फिर नेवल के अन्‍दर पटटी डाल कर इसके शेप को गोल गहरा आसानी से कुंछ ही दिनों में किया जा सकता है । आज कल ब्‍यूटी पार्लर की एक शाखा है नी शेप क्‍लीनिक उसमें यह कार्य किया जाता है ।


वैसे ब्‍यूटी पार्लर में भी अब नाभी को गहरा सुन्‍दर आकार देने का कार्य होने लगा है । प्राय: अधिकाश: मातायें व स्‍वयं महिलाये अपनी नाभी पर ध्‍यान नही देती । माताओं को चाहिये कि वे अपने बच्‍चीयों की नाभी पर ध्‍यान दे यदि एक निश्‍चत समय के बाद भी नाभी सकरी या उपर को डण्‍टल की तरह से निकल रही है या गहरी नही हो रही तो उन्‍हे इसका उपचार कराना चाहिये या स्‍वंय इसका उपचार वे नेवल स्प्रिंग या नेवल कार्क या नेवल पटटी से कर सकती है । नेवल स्प्रिंग एक साधारण स्‍टीललैस स्‍टील के तार की होती है जिसे नाभी की गहराई में डाल कर छोड दिया जाता है इससे स्प्रिंग नाभी के गहरे सतह में जा कर फैलती है इससे सकरी नाभी का आकार बढ कर गोल होने लगता है लगातार आठ माह तक यदि इसे लगाया जाये तो स्‍थाई रूप से नाभी का आकार गोल चौडा हो जाता है इसके साथ नाभी भी अधिक गहरी हो जाती है । इसे लगाने पर स्प्रिंग का तार दिखलाई नही देता क्‍योकि वह नाभी की दिवारों को दबाकर छिप जाता है । इसीलिये आज कल ऐसी महिलाये जिनकी नाभी सकरी एंव कम गहरी है जो किसी फंगशन आदि में नाभी र्दशना वस्‍त्र पहन कर जाती है वे इस नेवल
स्प्रिंग का प्रयोग करती है ।  दुसरी विधि है नेवेल कार्क यह एक साधरण सा कार्क होता है जो नाभी की साईज से थोडा सा बढा होता है उसे नाभी के अंदर डाल कर छोड दिया जाता है इसे लम्‍बे समय तक लगाने से नाभी का आकार चौडा और गहरी पहले से अधिक गहरी हो जाती है । नेवल पटटी एक साधरण सी पटटी होती है जिसे नाभी की गहराई में डालकर फैला दिया जाता है एंव इसे लम्‍बे समय तक नाभी पर लगाये रहने से नाभी गोल  चौडी व गहरी सुन्‍दर हो जाती है । नाभी के ऊपर के मसल्‍स को ऊभारने के लिये नेवल कपिंग यत्र से कुछ दिनों तक कपिंग किया जाता है इससे नाभी के चारों तरफ के मसल्‍स के ऊभरने से नाभी गहरी दिखने लगती है । इलैक्‍ट्रों होम्‍योपैथिक में की कैंसरोसोस -15 दवा को लगाने एंव उसका दिन में तीन बार नियमित कुछ दिनों तक प्रयोग करने से नाभी गहरी होने लगती है ।




                                                                                        डॉ0जीनत खान  
                                           नी शेप एक्‍सपर्टस
                                            राझी जबलपुर
                                        neeshep.blogspot.com 

                                xxjeent@gmail.com

शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2017

बॉझपन में नाभी का रहस्‍य



Naabhi Chakra / नाभि चक्र


न्यूरोथेरेपी चिकित्सा पद्धिति में नाभि को केंद्र मानकर उपचार किया जाता है | जो वैदिक कल में भी अपने उत्कर्ष पर था | नाभि का शरीर के महत्व :- नाभि यानि शरीर का केंद्र = किसी भी भौतिक या अभौतिक व्यवस्था का सिस्टम केंद्र ठीक होना बहुत महत्वपूर्ण है | केंद्र के हिल जाने मात्र से पूरी व्यवस्था चरमरा जाती है | चाहे वह शैल हो, शरीर हो, समाज हो, देश हो, या विचार | नाभि शरीर का केंद्र है | नाभि से ही शरीर की उत्पति एवं विकास केवल नाभि द्वारा ही होता है | नाभि केवल भौतिक केंद्र न होकर एक उर्जा का केंद्र भी है | नाभि न्यूरोथेरेपी आज के विश्व की आवश्यकता

आज का विश्व जहाँ ग्लोबल वॉर्निंग जैसे संकट से जूझ रहा है। इतना अधिक पर्यावरण प्रदूषण तथा चीजों का अभाव है। अनेक देश जो अभी-भी विकासशील हैं। जहाँ शिक्षा एवं साधनों का अभाव है। स्वास्थ्य पाना या स्वस्थ जीवन जीना एक चेलेंज बन गया है। न सिर्फ विकासशील अपितु विकसित देशों में भी स्वास्थ्य का अभाव है। कारण छोटी-छोटी बातों का ध्यान न रखना तथा प्रदुषण । ऐसे समय में हमें डॉ० लाजपतराय मेहरा जी ने एक ऐसी थैरेपी का वरदान दिया है। जिससे न केवल पूर्ण स्वास्थ्य सम्भव है बल्कि प्रदुषण का भी खतरा नहीं है। क्योंकि यह एक बिना दवा बिना किसी उपकरण एवं बिना किसी कुप्रभाव (साइडइफेक्ट).

ProductsNaabhi Chakra / नाभि चक्र



Naabhi Chakra / नाभि चक्र

Naabhi Chakra / नाभि चक्र 
For Healthy Naabhi Chakra / 
नाभि को स्वस्थ रखने मे सहायक


The Naabhi Chakra should be taken by:    
नाभि चक्र निम्न व्यक्तियों को लेनी चाहिए:

For Worldly success: “Health is Wealth”, it is virtually impossible to have a healthy and disease free body without having a healthy Naabhi Chakra
संसारिक लोग: पहला सुख निरोगी काया, यह निश्चित है कि नाभि चक्र व्यवस्थित होने से ही स्वस्थ एवम् निरोगी काया हो सकती है।

For Spiritual realization: The “Naabhi Chakra” Tablet is especially beneficial for those who want to activate their innate spiritual powers. Naabhi Chakra is the third Chakra in the energetic system. A healthy Naabhi Chakra ensures proper functioning of Chakras above it. Without correcting the Naabhi Chakra, spiritual growth is not possible.
अध्यात्मिक लोग: गुप्त अध्यात्मिक शक्तियाँ जाग्रत करने के लिए नाभि चक्र, तीसरा चक्र है, जिसके ठीक होने पर नीचे के 2 चक्रों के साथ साथ, उपर के 4 चक्रों मे भी उर्जा संचार होना स्वतः शुरू हो जाता है।



The “Naabhi Chakra” tablet aligns the displaced Naabhi Chakra in the body, through a unique combination of divine herbs. There is no reference of this medicine in any book.
नाभि चक की यह गोली विशिष्ट जड़ी बूटियों द्वारा नाभि चक्र को अपनी जगह पर ला देने में सक्षम है। इस गोली का उल्लेख किसी भी ग्रंथ में नही है। 

In the following situations should the “Naabhi Chakra” be taken: 
निम्नलिखित महसूस होने पर उपयोग में लाएँ:
·                       Not obtaining benefits even after yogic kriya/activities
·                       योग करने पर भी योग किर्याओं का लाभ ना मिलने पर
·                       Feeling lazy, tired, irritable, unable to concentrate on work, dark circles underneath eyes, feeling of hopelessness, feeling fearful without any reason, weakness, constipation, gas, acidity, unexplained abortion, irregular menstrual periods, excessive pain during periods, migraine, infertility, impotency etc.
·                       आलस्य, थकान, चिढ़चिड़ापन, काम में मन ना लगना, आँख का नीचे काले गड्ढे, निराशा, अकारण भय, कमज़ोरी, कब्ज, गेस, एसिडिटी, गर्भपात, ऋतु स्राव मे दर्द या असमय आना, माइग्रेन, बच्चे ना होना, नामर्द आदि
·                       Not obtaining a satisfactory explanation of why feeling unwell even after consulting doctor, vaidya, hakim and various medical tests.
·                       डाक्टर/वैद्य/हकीम आदि को दिखाने पर और सभी प्रकार के टेस्ट करने पर भी यदि कोई संतोषजनक बात समझ में ना आयें
·                       After knowledge of displacement of Naabhi Chakra
·                       नाभि चक्र के हटने की जानकारी होने पर
·                       For spiritual upliftment
·                       अध्यात्मिक उत्थान के लिए
Direction of use: 
सेवन विधि:
·                       for ages 5 years and above
·                       5 वर्ष की आयु के बाद कोई भी सेवन कर सकता है।
·                       when taking for the first time, take 1-1 tablet each, in the morning on empty stomach, with plain water for two consecutive days, after that, take one tablet every week
·                       सादे पानी से खाली पेट लें, 10-15 मिनट तक कुछ भी ना खाएँ, पहली बार 2 दिन लगातार 1-1 गोली प्रात: खाली पेट, सादे पानी से लें, उसके बाद प्रति साप्ताह 1 गोली लेते रहें।
·                       discontinue use after a course of 3-6 months and then take only when Naabhi is displaced
·                       3 से 6 माह का कोर्स करने के पश्चात लेना बंद कर सकते हैं, पुन: नाभि जब अपने स्थान से हट जाए तो सेवन करें।
·                       If you are suffering from nervous disorders, chronic disease, general weakness or weakness after delivery, you may take one tablet every week till you are better
·                       यदि आप स्नयुविकार, रोग, कमज़ोरी या प्रसव के बाद से कमजोर हैं तो 5-5 दिन में 1 गोली लें, जब तक आप ठीक ना हो जाएँ।
Precaution: Crushing or chewing of tablet is to be avoided, as that will render the supplement ineffective 
सावधानी: गोली को चूस कर या चबाकर किसी भी परिस्थिति में ना खाएँ। ऐसा करने पर गोली का प्रभाव समाप्त हो जाता है। 

Use the medicine under medical supervision only 
कृपया चिकित्सक के प्रामर्शानुसार प्रयोग करें
The world’s only ayurvedic medicine to align and balance the displaced Naabhi Chakra in 5-10 minutes
5-10 मिनट में नाभि चक को व्यवस्थित करने वाली, विश्व की सर्वप्रथम आयुर्वेदिक औषधि

मर्म चिकित्सा विज्ञान की आधार शिला

भारतवर्ष में शल्य तंत्र की एतिहासिक प्रष्ठभूमि पर द्रष्टिपात करने पर इसका सम्बन्ध वेदों से मिलता है| शिरोसंधान, टांग का काटना और लौह निर्मित टांग का प्रत्यारोपण, देवचिकित्सक अश्विनीद्वय द्वारा किए गए शल्य कर्मों के कुछ उल्लेखनीय उदहारण है| जैसा की सर्वविदित है की महर्षि सुश्रुत द्वारा प्रतिपादित सुश्रुत संहिता, शल्य तंत्र का प्राचीनतम उपलब्ध ग्रन्थ है, जिसको ईसा से 300 से 3000 वर्ष पूर्व का माना जाता है| वास्तव में आज जितना भी हम भारतीय शल्यतंत्र के विषय में जानते है वह सिर्फ सुश्रुत संहिता के माध्यम से ही संभव हो चुका है इसके आभाव में शल्यतंत्र में उल्लिखित किसी भी शल्यकर्म (आपरेशन) के विषय में जानना असंभव है| सुश्रुत संहिता न केवल हजारों वर्ष पूर्व विकसित शल्य तंत्र के स्तर का ज्ञान होता­ है, वरन आधुनिक शल्य तंत्र की नींव भी सुश्रुतोक्त विज्ञान में समाहित दिखाई देती है| आज सम्पूर्ण चिकित्सा जगत इस सत्य को स्वीकार करने लगा है|
भारतीय शल्य तंत्र का महत्वपूर्ण पक्ष है की यह विज्ञान परम्परागत हस्तकौशल से विकसित होता हुआ एक पूर्ण विकसित शैक्षणिक विषय के रूप में प्रतिष्ठापित हुआ, जिसका अयुर्वेद के आठ अंगों में सर्वोपरि स्थान है|महर्षि सुश्रुत प्रथम व्यक्ति है, जिन्होंने शल्य तंत्र के वैचारिक आधारभूत सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया, जिसके आधार पर प्राचीन भारतवर्ष में शल्य कर्म किये जाते रहे| शल्य तंत्र के प्राचीनतम ग्रंथ सुश्रुत सहिंता में शल्य तन्त्र के अतिरिक्त अन्य विषय भी सम्मिलित कान, गले, और सर के रोग, प्रसूतितन्त्र और चिकित्साविज्ञान विषयक आचार संहिता आदि विषय महत्वपूर्ण है| महर्षि सुश्रुत ने सबसे पहले शवच्छेदन विधि का वर्णन किया था| महर्षि सुश्रुत द्वारा प्रतिपादन नासासंधान विधि वर्तमान में विकसित प्लास्टिक सर्जरी का मूल आधार बनी है, इसे सभी लोग निर्विवाद रूप ले स्वीकार करते है| आधुनिक प्लास्टिक सर्जरी विषयक ग्रंथों में सुश्रुत की नासासंधान विधि का उल्लेख इंडियन मेथड ऑफ़ राइनोप्लास्टीके रूप किया जाता है|
महर्षि सुश्रुत के अनुसार मनुष्य शरीर के में 107 मर्मस्थान, 700 सिरायें, 300 अस्थियाँ, 400 स्नायु 500 मांसपेशियां और 210 संधियाँ होती है| मर्म धातु भेद से विभिन्न प्रकार के होते हैं| पांच प्रकार के मर्मों में सिरामर्म अत्यंत महत्वपूर्ण होते है| इन पर होने वाला अधात घातक होता है, इसलिए सिराओं का विशिष्ट वर्णन सुश्रुत संहिता में किया गया है| सिरावेधन, रक्तमोक्षण की एक महत्वपूर्ण विधि है| इस महत्वपूर्ण पराशाल्यकर्म के अनंतर कोई घातक परिणाम नही हो, इसलिए सिराओं का ज्ञान होना बहुत आवश्यक है| शल्यकर्म(ऑपरेशन) एवं सिरावेधन के अनंतर इन मर्म स्थानों को अघात से बचाना आवश्यक है| मर्म चिकित्सा के सन्दर्भ में भी सिराओं का ज्ञान होना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि मर्म चिकित्सा के सद्यःप्रभावकारी एवं असावधानी पूर्वक किए जाने पर घातक होने के कारण इन विशिष्ट सिराओं के अभिघात का भय रहता है|
इस स्रष्टि के निर्माण काल से ही पंचभूतात्मक सत्ता का अस्तित्व रहा है| पृथ्वी, जल तेज, वायु और आकाश के सम्मिश्रण से त्रिदोषात्मक मनुष्य-शरीर की उत्पत्ति हुई है| मनुष्य के उदभव-काल से ही मनुष्य शरीर रोगाक्रांत होता रहा है| तभी से मनुष्य स्वस्थ्य संवर्धन, रोग प्रतिरक्षक एवं रोगनिवारण के लिए अनेक उपाय करता आया है| मनुष्य की समस्त शरीर क्रियाओं का नियमन त्रिदोष(                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                               
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                          
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                          वात, पित्त और कफ) के द्वारा किया जाता है| वैकारिक अवस्था में यह तीनों दोष विभिन्न रोगों का कारण बन जाते है| सामान्य और वैकारिक दोनों अवस्थाओं में दोषों का विभिन्न सिराओं के माध्यम से शरीर में परिवहन  किया जाता है| यह कहना पूर्णतया उचित नही है की दोष किसी विशेष सिरा के माध्यम से ले जाया जाता है| परन्तु दोषों की प्रधानता के कारण सिराओं को वातवाही, पित्तवाही, कफवाही सिरा की संज्ञा दी जाती है| इन्ही स्थान विशेष की विशिष्ट सिराओं के वेधन से शोथ, विद्रधि, त्वकरोग आदि अनेक रोगों में आश्चर्यजनक लाभ होता है|
सुश्रुत के अनुसार वातवह, पित्तवह, कफवह और रक्तवह सभी सिराओं का उदगम स्थल नाभि है, जो की महत्वपूर्ण मर्म स्थान है| नाभि से यह सिरायें ऊधर्व, अध% एवं तिर्यक दिशाओं की ओर फैलती है| नाभि में प्राण का विशेष स्थान है| पंचभूतात्मक स्रष्टि में जीव प्राणाधान से ही सजीव और उसके अभाव में निर्जीव होता है| गर्भावस्था में गर्भस्थ शिशु का पोषण माता के गर्भनाल से होता है| गर्भनाल गर्भस्थ शिशु की नाभि से संलग्न होती है| जीवन के प्रारंभिक काल में नाभि का महत्वपूर्ण कार्य होता है, परन्तु बाद के जीवन में भी नाभि को अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है| सात सौ सिराओं में दस सिरायें महत्वपूर्ण होती है| वातज या vatवातवह सिराओं की संख्या एक सौ पिचहत्तर होती है| पित्तज या पित्तवह सिराओं की संख्या एक सौ पिचहत्तर होती है| कफज या कफवह सिराओं की संख्या एक सौ पिचहत्तर होती है| रक्त के स्थानों/आशयों, विशेष रूप से यकृत और प्लीहा से सम्बंधित सिराओं की संख्या भी एक सौ पिचहत्तर बताई गई है|
एक शाखा में पच्चीस वातवह सिरायें होती है| इसी तरह चारों (दो बाहु और दो अध%शाखा) में कुल मिलकर सौ वातवह सिरायें है| चौंतीस वातवह सिरायें वक्ष और उदर प्रदेश में होती है (जिनमे से अथ शिश्न और गुदा से सम्बंधित है) दो शिराएँ प्रत्येक पार्श्व में होती हैं- (चार)| छह सिरायें प्रष्ट भाग में स्थित है| छह सिरायें उदर में तथा दस सिरायें वक्ष में स्थित है| इक्तालीस सिरायें उर्ध्र्व जत्रुगत प्रदेश में होती है| चौदह सिरायें कंठ में, चार कर्ण में, नौ जिव्हा में, छह नासा में और आठ नेत्र में होती है| कुल वातवाही सिराओं की संख्या एक सौ पिचहत्तर होती है| अन्य तीन प्रकार की सिराओं का भी यही क्रम होता है| मात्र नेत्र में एक परिवर्तन है, नेत्र में पित्तवाही सिरायें दस होती है, तथा कर्ण में दो पित्तवाही सिरा होती है| जिन सिराओं का वेधन नही करना चाहिए उनके वेध से निश्चय ही वैकल्य तथा म्रत्यु हो जाती है| शाखाओं में चार सौ, कोष्ठ(धड़) में एक सौ छत्तीस, शिर (ग्रीवा के उपर) में एक सौ चौसठ सिरायें होती है| इन सिराओं में से शाखाओं में सोलह, कोष्ठ में बत्तीस और शिर में पचास सिरायें अवेध्य है| एक सक्थि में सौ सिरायें होती है| इनमे एक जलधरा और तीन आभ्यंतर (ऊर्वी नामक दो, तथा लोहिताक्ष एक) अवेध्य होती है| ऐसा ही दूसरी सक्थि और बाहू में निर्दिष्ट है| इस प्रकार चारों शाखाओं में कुल सोलह सिरायें अवेध्य है| श्रोणीप्रदेश में बत्तीस सिरायें होती है| उनमे आठ अवेध्य है- दो-दो विटपों में और दो-दो कातिक तरुणों में| एक एक पार्श्व में आठ-आठ सिरायें होती है| उनमे से एक-एक उनमे से एक-एक ऊधर्वगा शिराओं और पार्श्व संधिगत दो सिराओं को शस्त्र कर्म के समय बचाना चाहिए| पीठ में प्रष्ट वंश के दोनों ओर चौबीस सिरायें है| उनमे ऊपर जाने वाली ब्रह्ती नामक दो-दो सिरायें अवेध्य है| उतनी ही चौबीस उदार में है, उनमे मेढª के ऊपर की रोमराजि के दोनों ओर दो-दो सिराओं को बचाना चाहिए|
चालीस सिरायें वक्ष प्रदेश में होती है| उनमे से चौदह अवेध्य है| ह्रदय में दो, स्तनमूल में दो-दो, स्तनरोहित, अपलाप, अपस्तब्ध इनके दोनों ओर आठ, इस प्रकार पीठ, उदर और उर में बत्तीस सिरायें अवेध्य होती है| जत्रु के ऊपर एक सौ चौंसठ सिरायें होती है| इनमे से छप्पन सिरायें ग्रीवा में होती है| उनमे से मर्मसंज्ञक बारह सिरायें है| दो क्रकाटिका, दो विधुर इस प्रकार ग्रीवा में सोलह सिरायें होती है| उनमे संधि धमनी जो दो-दो है, उनको बचाना चाहिए| जिहवा में छत्तीस सिरायें होती है| उनमे नीचे की सोलह सिराओं में से रसवहा दो, तथा वाग्वहा दो अवेध्य है| नासा में चौबीस सिरायें होती है, उनमे से नासा के समीपवर्ती चार सिराओं को बचाना चाहिए| उन्ही में से तालू के मृदुप्रदेश में एक सिरा को बचाना चाहिए| दोनों आँखों में अड़तीस सिरायें होती है| उनमे अपांगो की एक-एक सिरा को बचाना चाहिए| दोनों कानों में दस सिरायें होती है| उनमे से शब्दवाहिंनी एक-एक सिरा को बचाना चाहिए| मस्तक में बारह सिरायें है| उनमे उत्पेक्ष में दो, सीमांत में एक-एक और अधिपति की एक सिरा को बचाना चाहिये| इस प्रकार जत्रु के ऊपर पचास अवेध्य सिरायें है|
सुश्रुत ने रक्तमोक्षण और सिरा वेधन के सन्दर्भ में विभिन्न सिरा मर्मों का विस्तृत उल्लेख किया है| रक्तमोक्षण को शाल्यकर्म का पूरक भी माना जाता है| सिरा वेधन, रक्तमोक्षण की एक महत्वपूर्ण विधि है| सिरा वेधन के अतिरिक्त अलाबू, श्रंग और जलौका द्वारा भी रक्तमोक्षण किया जाता है| जितनी भी अवेध्य सिरायें है या तो वह मर्म स्थान है अथवा मर्म के समीप स्थित है| उन स्थानों पर छेदन, भेदन आदि शस्त्र कर्म, अग्नि कर्म, एवं रक्तमोक्षण का प्रयोग नही करना चाहिए|
सूक्ष्म तंत्र (उत्क्रांति का मध्य मार्ग)

मूलाधार चक्र
शरीर में स्थान - रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्से में
चक्र के बिघाड से आने वाले दोष - लालची स्वभाव, अधार्मिक स्वभाव
गुण - पवित्रता, निरागसता, अबोधिता, सुज्ञता, आत्मविश्वास, दिशाओं का ज्ञान
ख़राब होने के कारण - चालाखी, हेराफेरी, मुक्त एवं अनैसर्गिक यौन सम्बन्ध, तांत्रिक प्रयोग, अश्लील वांग्मय वाचन
परिणाम - यौन सम्बंधित रोग, ऐड्स, शारीरिक और मानसिक कमजोरी, संतान प्राप्ति में समस्याएं
विवरण - मूलाधार चक्र के चार पंखुडिया हैं और उनकी स्थापना त्रिकोनाकृति अस्थि के निचे के हिस्से में हैं। शारीरिक स्तर पर पेल्विक प्लेक्सास के द्वारा इस का कार्य चलता हैं। मूलाधार चक्र कुण्डलिनी शक्ति का रक्षण का कार्य करते हैं.




स्वाधिष्ठान चक्र
शरीर में स्थान - मूलाधार के ऊपर और नाभि के निचे, किडनी, यकृत
स्वभाव के वजह से चक्र में आने वाले दोष - बहोत अतिरेकी स्वभाव
कार्य - गर्भपेशी, किडनी, लीवर इन सबका नियंत्रण करना, मस्तिष्क को सोचने के शक्ति देना
खराबी आने की वजह - बहोत ज्यादा सोचना, अति-नियोजन, तम्बाखू अवं अति दवाई का सेवन करना, भविष्यके बारे में बहोत ज्यादा सोचना, अहंकारी स्वभाव, अगुरु (ढोंगी गुरु) एवं तांत्रिक लोगो के पास जाना।
परिणाम - मधुमेह, गॅसेस, अशुद्ध चित्त, किडनी और लीवर से सम्बंधित रोग आदि।
विवरण - स्वाधिष्ठान चक्र के छह पंखुडिया हैं और शारीरिक स्तर पर वह आर्टिक प्लेक्सास का कार्य करते हैं। निर्मिती के लिए, सोचने के लिए, भविष्य के बारे में सोचने के लिए यह केन्द्र मस्तिष्क को शक्ति पोहोचता हैं।
चित्त का स्थान केवल मस्तिष्क में नही बल्कि लीवर में होता हैं इसी लिए मद्यपान करने से मानवी चित्त घुमातारहता हैं और लीवर में बिघाड हो जाता हैं। इस चक्र के बाएँ तरफ़ शुद्ध विद्या का स्थान हैं। इस का नियंत्रण शुद्धज्ञान देने वाले देवता करते हैं जिसके वजह से हम में सौंदर्य दृष्टी विकसित होती हैं।






नाभि चक्र
कार्य - पेट, आंत, लीवर, पाचनशक्ति संभालना
शरीर में स्थान - नाभि
चक्र के बिघाड से आने वाले दोष - असमाधानी स्वभाव, अतृप्त स्वभाव, कंजूस, पति अथवा पत्नी पे रोब जमाना।
गुण - पारिवारिक सुख संपन्नता विकास, सामाजिक विकास, नैतिकता, अच्छा साफ़ चरित्र।
ख़राब होने के कारण - पैसे हेराफेरी, कंजूसी, खाने में चित्त होना, घर-गृहस्ती एवं धन की ज्यादा चिंता करना, अन्टिबिओटिक्स का बहोत ज्यादा सेवन करना, भगवन के नाम पे बहुत सरे उपवास करना।
विवरण - नाभि चक्र के दस पंखुडियां हैं। शारीरिक स्तर पर यह चक्र सोलर प्लेक्सास का कार्य करता हैं। बढ़ते समृद्धि के साथ लोग और भी पैसे के पीछे भागते हैं। उस वजह से इस चक्र में तनाव एवं कठिनाइयाँ आते हैं। भौतिक सुख के पीछे भागना, मित आहार, आर्थिक अव्यवस्था आदि इस चक्र के बिघाड के लिए कार्णीभुत होते हैं।









अनाहत चक्र
गुण : प्रेम, करुना, सुरक्षा, हितेषिता
नियंत्रित अंग : ह्रदय, फेफडे, रक्तदबाव
बिगाड़ से होने वाले दुष्परिणाम : हृदयरोग, श्वासोश्वास सम्बन्धी रोग, अस्थमा
बारह पंखुडियों वाला ये चक्र अनाहत कहलाता है और मेरुरज्जू में उरोस्थि (sternum bone) के पीछे इसका स्थान हैं। ये चक्र ह्रदय चक्र के अनुरूप हैं जो बारह वर्ष की आयु तक रोग प्रतिकारक (Antibodies) पैदा करता हैं। तत्पश्चात ये रोग प्रतिकारक हमारे शरीर तंत्र में फ़ैल जाते हैं और शरीर या मस्तिष्क पर होने वाले किसी भी आक्रमण का मुकाबला करते हैं। व्यक्ति पर भावनात्मक या शारीरिक आक्रमण स्थिति में उरोस्थि के माध्यम से रोग प्रतिकारको को सुचना दी जाती हैं क्योंकि उरोस्थि ही सुचना प्रसारण का दूरस्थ नियंत्रण केन्द्र (Remote Control) हैं। ह्रदय तथा फेफडों की कार्य प्रणाली का नियमन करते हुए ये केन्द्र श्वास प्रक्रिया को नियंत्रण करता हैं।
कुण्डलिनी जब इस चक्र का भेदन करती है तो व्यक्ति अत्यन्त आत्म-विश्वस्त, सुरक्षित, चारित्रिक रूप से जिम्मेदार एवं भावनात्मक रूप से संतुलित व्यक्तित्व बन जाता हैं। ऐसा व्यक्ति अत्यन्त हितेषी एवं बिना किसी स्वार्थ के मानवता प्रेमी एवं सर्वप्रिय बन जाता हैं।







विशुद्धि चक्र
गुण : संपर्क कुशलता, सत्यनिष्ठ, व्यवहार कुशलता, विनम्रता, कूटनितिज्ञता, माधुर्य, साक्षीभाव, सभी के लिए निरासक्त प्रेम
नियंत्रित अंग : मुँह, कान, नाक, दात, जिह्वा, मुखाकृति, ग्रीवा तथा वाणी
मेरुरज्जु के ग्रीवा क्षेत्र (Neck Region) में स्थापित सोलह पंखुडियों वाला ये चक्र विशुद्धि चक्र कहलाता हैं। यह ग्रीवा चक्र (Cervical Plexus) के अनुरूप है जो नाक, कान, गला, गर्दन, दात, जिह्वा, हात एवं भाव भंगिमाओं (Gestures) आदि के कार्यों को नियमित करता हैं। ये चक्र अन्य लोगों से संपर्क के लिए जिम्मेदार हैं क्योंकि इन्ही अंगो के माध्यम से हम अन्य लोगों से संपर्क स्थापित करते हैं।
शारीरिक स्तर पर यह गल-ग्रंथि (Thyroid) के कार्य को नियंत्रित करता हैं। कटुवाणी, धुम्रपान, बनावटी व्यवहार एवं अपराध-भाव इस केन्द्र को अवरोधित करते हैं।
कुण्डलिनी जब इस चक्र का भेदन करती है तो व्यक्ति अपने व्यवहार में अत्यन्त सत्यानिष्ट, कुशल एवं मधुर हो जाता है और व्यर्थ के तर्क-वितर्क में नहीं फंसता। बिना अहम् को बढ़ावा दिए परिस्थितियों पर नियंत्रण करने में वह अत्यन्त युक्ति-कुशल हो जाता हैं।
आज्ञा चक्र
गुण : क्षमाशिलता, करुना, अहिंसा

नियंत्रित अंग : दृष्टी, द्रुकअन्तःपुर (Optic Thalamus), अल्पअन्तःपुर (Hypto Thalamus)
दो पंखुडियों के इस चक्र का नाम आज्ञा चक्र हैं. मस्तिष्क में (optic nerves) जहा एक दुसरे को पार करती हैं वह आज्ञा चक्र का स्थान हैं. ये चक्र पियूष तथा शंकुरूप (Pituitory and Pineal) ग्रंथियों की देखभाल करता हैं. ये ग्रंथियां शरीर में अहं तथा प्रतिअहं नाम की संस्थाओ की अभिव्यक्ति करती हैं.
क्योंकि ये चक्र आँखों की भी देखभाल करता हैं इसलिए सिनेमा, कंप्यूटर, टेलिविज़न, पुस्तकों आदि पर हर समय दृष्टी गडाये रखना इस चक्र को दुर्बल करता हैं. बहुत अधिक मानसिक व्यायाम एवं बौद्धिक कलाबाजियां इस चक्र को अवरोधित करती हैं और व्यक्ति के अन्दर अहं-भाव विकसित हो जाता हैं.
कुण्डलिनी जब इस चक्र का भेदन करती हैं तो व्यक्ति एकदम से निर्विचार और क्षमाशील बन जाता हैं. निर्विचारिता एवं क्षमाशीलता इस चक्र का सार है, अर्थात ये चक्र हमें क्षमा की शक्ति प्रदान करता हैं.
सहस्रार चक्र
गुण : निर्विचारिता, निरानंद, परमशांती, आत्मसाक्षात्कार, सामूहिक चेतना और आनंद

नियंत्रित अंग : तालू क्षेत्र
मस्तिष्क या तालू क्षेत्र स्थित हजार पंखुडियों वाला ये चक्र सहस्रार चक्र कहलाता हैं। वास्तव में इसमे इक हज़ार नाडियाँ हैं। आप यदि मस्तिष्क को आड़ा काटें तो सुंदर पंखुडियों की शक्ल में सहस्रदल कमल बनाती हुई इन नाड़ियों को आप देख सकते हैं। आत्मसाक्षात्कार से पूर्व बंद-कमल की तरह ये चक्र मस्तिष्क के तालू क्षेत्र को आच्छादित करता हैं।
जागृत होकर कुण्डलिनी जब इस चक्र का भेदन करती हैं तो सारी नाडियाँ भी जागृत हो जाती हैं और सभी नाडी केन्द्रों को ज्योतिर्मय करती हैं और हम कहते हैं के व्यक्ति आत्म-साक्षात्कारी (ज्योतिर्मय) हैं। तालू क्षेत्र का अधिक भेदन करके कुण्डलिनी ब्रम्हांड में एक मार्ग खोलती हैं और इस हम सर पे शीतल चैतन्य-लहरियों के रूप में अनुभव करते हैं। यह योग का वस्ताविकरण हैं, परमात्मा की सर्वव्यापी शक्ति से एकाकारिता (आत्म-साक्षात्कार)।