रविवार, 3 जून 2018

प्राचीन नाभी चिकित्‍सा


                   
                                                    प्राचीन नाभी चिकित्‍सा
 
नाभी चिकित्‍सा का उल्‍लेख विश्‍व की कई वैकल्‍पिक चिकित्‍सा पद्धतियों एंव कई परम्‍परागत उपचार विधियों में देखने को मिल जाती है ,परन्‍तु इस सरल सुलभ उपचार विधि के परिणामों से जन समान्‍य अनभिज्ञ है इसका मूल कारण यह है कि इस चिकित्‍सा पद्धति के जानकारो ने इस धन व यश कमाने के लिये अपने तक ही सीमित रखा, उनके बाद यह पद्धति धीरे धीरे उनके साथ लुप्‍त होती गयी । नाभी चिकित्‍सा या उपचार पद्धति के लुप्‍त होने के पीछे आधुनिक चिकित्‍सा विज्ञान का भी बहुत बडा हाथ है, जिन्‍होने इस प्रकृतिक उपचार विधि को अवैज्ञानिक एंव तर्कहीन कह कर, इसकी उपेक्षा ही नही की बल्‍की इसके विकास क्रम को ही अवरूध कर दिया , इसके पीछे मुख्‍य धारा से जुडी चिकित्‍सा पद्धतियों का व्‍यवसायीक दृष्‍टीकोण प्रबल था, जो इस जैसी सरल सुलभ तथा आशानुरूप परिणाम देने वाली उपचार विधि को हासिये में ला खडा कर दिया । चिकित्‍सा जैसा पुनित कार्य  व्‍यवसायीक प्रतिस्‍पृधा के भॅवरजाल में ऐसा फॅसता चला गया कि सस्‍ती सुलभ प्रकृतिक उपचार विधियॉ धीरे धीरे लुप्‍त होती चली गयी । इसीका परिणाम है कि आज नाभी उपचार जैसी सरल सुलभ तथा आशानुरूप परिणाम देने वाली उपचार विधियों से जन सामान्‍य अपरिचित है । विश्‍व के हर कोने में नाभी चिकित्‍सा, उपचार विधि किसी न किसी नामों से अभी भी प्रचलन में है एंव अपने आशानुरूप परिणामों की वजह से एंव मुख्‍य धारा कि चिकित्‍सा पद्धतियों के विरोध के बाबजूद अपना अस्‍तीत्‍व बनाये हुऐ है । नाभी चिकित्‍सा का उल्‍लेख हमारे  प्राचीन आयुर्वेद चिकित्‍सा पद्धति में देखा जा सकता है समुद्रशास्‍त्र एंव ज्‍योतिष विद्याओं में भी नाभी उपचार का उल्‍लेख है । अत: हम कह सकते है कि नाभी चिकित्‍सा हमारे भारतवर्ष की अमूल्‍य घरोहर है , जिसे हम न सम्‍हाल सके , सम्‍हालना तो दूर की बात है हमारा पढा‍ लिखा सभ्‍य समाज इसकी उपेक्षा करते न थकता था, वही बौद्ध भिक्षुओं ने हमारी इस उपचार विधि के महत्‍व को समक्षा एंव इसे अपने साथ चीन व जापान ले गये, जहॉ यह एक नई उपचार विधि, ची नी शॉग के नाम से चीन व जापान मे प्रचलित हुई । एक्‍युपंचर एंव एक्‍युप्रेशर उपचार विधियों के चिकित्‍सकों ने इसे एक नये उपचार विधि के रूप में प्रस्‍तुत किया, अत: कहने का तात्‍पर्य, मात्र इतना है, कि नाभी चिकित्‍सा विश्‍व की वैकल्पिक चिकित्‍सा पद्धतियों में किसी न किसी रूप में प्रयोग की जा रही है एंव इसके बडे ही अच्‍छे आशानुरूप परिणाम मिल रहे है । नाभी चिकित्‍सा के इतिहास को दोहराने की अपेक्षा इसके उपचार महत्‍व पर प्रकाश डालना उचित होगा ताकि जन सामान्‍य इस उपचार विधि का स्‍वयम उपयोग कर इसके परिणामों से परिचित हो सके ।
  जो सरलता से उपलब्‍ध हो जाये , उसका महत्‍व नही होता , परन्‍तु वही काफी मुश्किलों से प्राप्‍त हो तो उसका महत्‍व बढ जाता है । यदि आप से कहॉ जाये कि किसी बीमारी में बिना पैसों के उपचार हो सकता है तो आप को विश्‍वास नही होगा । आप ऐसे बिना खचों के उपचार की बातों में ही नही आयेगे, नाभी उपचार भी इसी प्रकार की चिकित्‍सा है जिसमें बिना किसी खर्च के असाध्‍य से असाध्‍य बीमारीयों का उपचार आसानी से किया जा सकता है यहॉ पर एक छोटा सा उदाहरण, मै देना चाहूंगा ,एक युवा महिला जो हमारे पडौस में रहती थी उसकी नई नई शादी हुई थी वह पेट की बीमारीयों से काफी परेशान थी ,कई जगह उसने अपना उपचार कराया बडे से बडे डॉक्‍टरों को दिखलाया परन्‍तु कुछ भी लाभ न हुआ ,एलोपैथिक से लेकर आयुर्वेदिक ,होम्‍योपैथिक ,यूनानी आदि कई चिकित्‍सकों का उपचार करा चुकी थी उसे किसी प्रकार लाभ नही हो रहा था इस दरबयान उसने मुक्षे भी विभिन्‍न चिकित्‍सकों के उपचार के परचे बतलाये , मैने उसे होम्‍योपैथिक की दबाये लिखी ,परन्‍तु उसने पहले होम्‍योपैथिक से उपचार करा लिया था इसलिये उसने मेरी दवाये न ली । इसी मध्‍य उसकी सासु मॉ उनके यहॉ आई जो नाभी को यथास्‍थान लाना जानती थी उसने अपने लडके से कहॉ अरे तुम जानते थे कि मै पेट सुधारना जानती हूं फिर तुमने मुक्षे क्‍यो नही बतलाया, लडका हॅसा और कहने लगा मॉ ये तुम्‍हारी समक्ष से बाहर है बडे बडे डाक्‍टरो तक की समक्ष में नही आया फिर तुम क्‍या करोगी । उसकी मॉ ने बहुं से कहॉ बेटा तुम इसकी बातों में न आओं । अब मरता क्‍या न करता, बहुं ने सोचा कि इस बिना पैसों के उपचार कराने में हर्ज ही क्‍या है । उसकी सासू मॉ ने पेट का परिक्षण किया उसने बतलाया कि बेटी तुम्‍हारी नाभी टली हुई है उसने उसके पेट का मिसाज कर नाभी को यथास्‍थान बैठाया फिर एक जलता हुआ दिया नाभी पर रख उस पर लोटा रखा । इससे उसकी नाभी यथास्‍थान बैठ गयी उसके पेट का र्दद पूरी तरह से चला गया । कई दिनों बाद जब मेरी पत्‍नी ने उससे उसकी बीमारी के बारे मे पूछा तो उसने बतलाया कि उसकी बीमारी उसी दिन से ठीक हो गयी जब से सासु मॉ ने नाभी को बिठा दिया था । अब आप ही बतलाईये इतने बडे बडे डॉ0 के उपचार से जो ठीक ना हो सकी वह इस छोटे से बिना पैसों के उपचार से पूरी तरह से ठीक हो गयी ।
उपचार :- नाभी चिकित्‍सा में सर्वप्रथम रोगी के नाभी का परिक्षण किया जाता है ,जिस प्रकार से हमारी हाथों की नाडीयॉ चलती (धडकती) है उसी प्रकार से हमारे, नाभी की नाडीयॉ चलती है , नाभी पर तीन अंगुलियॉ रख कर परिक्षण करने पर यदि यह नाडी नाभी के बीचों बीच धडक रही है तो रोगी स्‍वस्‍थ्‍य व दीर्ध जीवी होता है, परन्‍तु यदि यही धडकन ऊपर या नीचे या नाभी वृत के आजू बाजू है तो ऐसी स्थिति में रोगी को वही रोग होगा जिस तरफ नाभी नाडी की धडकन होगी । इस धडकन का अनुमान इस प्रकार किया जाता है, हमारे पेट के अंतरिक अंग जिस तरफ पाये जाते है उसे उसका प्रतिनिध क्षेत्र कहते है । एंव नाभी की धडकन जिस तरफ होती है उसी अंग में बीमारीयॉ होती है , नाभी धारीयों एंव उसकी बनावट से भी रोग की स्थिति को पहचाना जाता है । इसके बाद शरीर की अम्‍लता एंव क्षारीयता का परिक्षण नाभी पर हल्‍दी के पावडर को डालकर या लिटमस पेपर से किया जाता है इस परिक्षण में यदि नाभी गहरी है तो उसकी नाभी पर पानी मे हल्‍दी को घोल कर डालने पर यदि हल्‍दी का रंग लाल हो जाये तो समक्षों अम्‍ल की मात्रा शरीर में अधिक है एंव ऐसी स्थिति में रोगी को अम्‍ल से सम्‍बधित अनेक प्रकार की व्‍याधियॉ हो सकती है यहॉ तक की कैंसर होने की संभावना बढ जाती है यदि इसका रंग नीले रंग का हो जाता है तो समक्षे शरीर रसों में क्षारीयता है क्षारीय होना अच्‍छी बात है एंव व्‍यक्ति के स्‍वस्‍थ्‍यता का सूचक है शरीरिक रसो का क्षारीय होने से कई रोगों का निदान स्‍वयम हो जाता है । आज की जीवन शैली एंव खानपान की वजह से मनुष्‍य के शरीर में अम्‍ल की मात्रा बढ रही है जो बीमारीयों का मूल कारण है इस उपचार विधि में इस अम्‍लीय एंव क्षारीयता रस समायोजन के सूत्र का पालन रोग निदान हेतु किया जाता है ।
नाभी चिकित्‍सा का मूल सिद्धन्‍त है शारीरिक रस रसायनों की समानता एंव नाभी टलने पर उसे यथास्‍थान बैठालना ।

   आज चिकित्‍सा जैसा पुनित कार्य एक व्‍यवसाय बन चुका है, छोटी से छोटी बीमारीयों के उपचार हेतु मुख्‍यधारा से जुडे चिकित्‍सक बडे से बडा परिक्षण लैब टेस्‍ट कराते है हजारो रूपये खर्च होने के बाद दवाये लिखी जाती है या उपचार शुरू होता है । जितनी बडी अस्‍पताल या जितना बडा डॉ0 उतना खर्च । मरीज भी चिकित्‍सा एंव उपचार के भंवरजाल में इस तरह से उलझ जाता है कि उसे भी कुछ समक्ष में नही आता ।
                   नाभी परिक्षण से रोग की पहचान
नाभी चिकित्‍सा पद्धति एक सरल, सुलभ उपचार विधि है , जिस प्रकार  आज मुख्‍यधारों से जुडी चिकित्‍सा पद्धतियॉ या अन्‍य चिकित्‍सा विधियॉ रोग निदान से पूर्व रोग की पहचान करने हेतु कई प्रकार की विधियॉ अपनाती है जैसे पैथालाजी ,एक्‍सरे ,सोनोग्राफी आदि इससे शरीर में कौन सा रोग है यह मालुम हो जाता है । आयुर्वेद जैसी प्राचीन चिकित्‍सा में नाडी परिक्षण आदि से रोग की पहचान की जाती है, होम्‍योपैथिक उपचार में लक्षणों के आधार पर रोग की स्थिति को पहचान कर उपचार किया जाता है । ठीक इसी प्रकार नाभी चिकित्‍सा में भी उपचार से पूर्व शरीर के किस अंग में खराबी है या कौन सा रोग है पहचाना जाता है  नाभी चिकित्‍सकों का मानना है कि समस्‍त प्रकार की बीमारी पेट से प्रारम्‍भ होती है उनका सिद्धान्‍त है कि रस एंव रसायनों की असमानता से समस्‍त प्रकार के रोग उत्‍पन्‍न होते है !
 1-रस :- प्राणी जीवन का आधार ही रस है, यानी हमारे शरीर में जो भी तरल रूप मे है चाहे वह पाचन क्रिया उत्‍पन्‍न होने वाले रस, विटामिन, एमिनो एसिड, या फिर विभिन्‍न प्रकार के रसायनिक घटक ही क्‍यो न हो, प्रथमावस्‍था में ये सभी रस की श्रेणी में ही आते है, फिर सम्‍बन्धित अंगों के माध्‍यम से रक्‍त व  हार्मोन में परिवर्तित होते है जो रस की , द्वितिय अवस्‍था में रसायनिक घटक में परिवर्तिन होते है ।
2-रसायन :- हम जो कुछ गृहण करते है वह पहले रस में परिवर्तित होता है इसके बाद रसायनिक घटकों में रसायनिक प्रक्रिया द्वारा परिवर्तित होता है, इसे रसायन कहते है । हार्मोन्‍स हो या रक्‍त में मिश्रित सभी प्रकार के तत्‍व रसायनिक प्रक्रिया के माध्‍यम से ही परिवर्तित होते है ।
  अत: नाभी चि‍कित्‍स का मूल सिद्धान्‍त है कि प्राणीयों की समस्‍त प्रकार की बीमारीयॉ रस रसायनों की असमानता की वजह से उत्‍पन्‍न होती है । इस चिकित्‍सा विधि में उपचारकर्ता सर्वप्रथम रस एंव रसायनों को समान्‍यावस्‍था में लाने का प्रयास करता है । उनका मानना है कि रस एंव रसायनों के साम्‍यावस्‍था में आते ही समस्‍त प्रकार की बीमारीयों का निदान बिना किसी दबा दारू के हो जाता है ।
परन्‍तु हमारे शरीर के रस रसायनों के परिवर्तन व प्रतिक्रिया के परिणाम स्‍वरूप जो तत्‍व पसीने आदि के माध्‍यम से शरीर से निकलते रहते है वह नाभी के गहरे भाग में धीरे धीरे जमने लगते है जो मैल की परत के रूप में देखे जा सकते है इसमें एक विशिष्‍ट प्रकार की गंध पाई जाती है यह गंध शरीर के रस रसायनों की विकृति को दृशाती है शरीर में अम्‍लता एंव क्षारीयता को इसकी गंध से आसानी से पहचाना जाता है चूंकि शरीर में रस रसायन के परिवर्तन एंव अम्‍लीयता तथा क्षारीयता के स्‍तर की असमानता से कई प्रकार की बीमारीयों का जन्‍म होता है । अम्‍ल एंव क्षार का पी एच-7 होने पर शारीर का रसायनिक संतुलन सही होता है ,पीएच-7 से अधिक होने पर क्षारीय एंव कम होने पर अम्‍बली होता है  ]
 इसके घटने या बढने पर शरीर क्षारीय या अम्‍बलीय होने लगता है अम्‍ल व क्षार की अधिकता या कमी का परिणाम शारीरिक रसायनिक घटकों में असमानता उत्‍पन्‍न तो करती ही है साथ ही अम्‍बली या क्षारीय माध्‍यमों में होने वाले वैक्‍टरियॉ उत्‍पन्‍न होने लगते है इससे वेक्‍टेरियाजनित बीमारीयों की संभावनाये बढ जाती है । क्षय रोग अम्‍लीय रोग फेफडों के रोग व कैसर जैसी बीमारीयों में शारीर में अम्‍ल का स्‍तर बढ जाता है इससे नाभी मे जो गंध होती है अम्‍बलीय या खटटी ,इसके मैल की परत को निकाल कर उसे साफ पानी में घोलकर लिटमस पेपर पर डालने पर लिटमस पेपर का रंग नीला हो जाता है । क्षार के स्‍तर के अधिक बढने पर  कडुवी सी गंध आती है तथा इसकी परत का परिक्षण करने पर लिटमस पेपर लाल हो जाता है । जानकार नाभी चिकित्‍सक नाभी पर पाये जाने वाले इस मैल का परिक्षण विभिन्‍न विधियों से कर बीमारी का पता आसानी से लगा लेते है ।  जैसे यदि नाभी धारी के मध्‍य पीला रंग है तो उसे पित्‍त से सम्‍बन्धित बीमारीयॉ या फिर पीलियॉ जैसा रोग होगा , ठीक इसी प्रकार यदि नाभी धारीयों का रंग अत्‍यन्‍त लाल है तो उसे रक्‍त विकार की शिकायत हो सकती है । नाभी धारीयों के मध्‍य सफेद रग का होना वात रोग या नसों से सम्‍बन्धित बीमारीयों का दृशाता है । नाभी में खटटी गंध आने पर रोगी अपच तथा अम्‍ल्‍ा रोग का शिकार होता है ।
 अम्‍ल क्षार  का संतुलन बिगडना :- इस चिकित्‍सा पद्धति का माना है कि शरीर में समस्‍त प्रकार की बीमारीयों का उत्‍पन्‍न होना अम्‍ल क्षार के संतुलन की असमानता है हमारे शरीर में दो तरह के तत्‍व होते है एक अम्‍ल दुसरा क्षारीय । यदि इन दोनो का संतुलन बिगड जाये तो हमारे शरीर मे रोग उत्‍पन्‍न होने लगता है शरीर में अम्‍ल का अधिक होना घातक है    शरीर में अम्‍ल की मात्रा अधिक होने पर कई प्रकार की बीमारीयॉ उत्‍पन्‍न जैसे शरीर में र्दद रहना ,पित्‍त का बढना ,बुखार आना ,चिडचिडाहट , रोग प्रतिरोधक क्षमता का कम हो जाना ,कैसर जैसी घातक बीमारीयों का मुख्‍य कारण शरीर में अम्‍लीयता का बढना है ।
अम्‍ल :- अम्‍ल (एसिड) को मोटे हिसाब निम्‍न प्रकार से पहचान सकते है ये स्‍वाद में खटटे होते है एंव हल्‍दी से बनी रोली को नीला कर देती है । अधिकाश धातुओं पर अभिक्रिया कर हाईड्रोजन गैस उत्‍पन्‍न करती है तथा क्षार को उदासीन कर देती है ।
क्षार:- क्षार (एलकलाईन) उन पदाथों को कहते है जिनका विलयन चिकना चिकना होता है तथा ये स्‍वाद में कडुवे होते है ,हल्‍दी से बने रोली को लाल कर देते है और अम्‍लों को उदासीन कर देते है । हमारे शरीर में भी दो तरह के तत्‍व होते है अम्‍ल हाईडोजन आयन को शरीर में बढादेता है क्षारीय भोजन हाइडोजन आयन को कम कर देता है जो शरीर के लिये लाभदायक है ।
पी एच-7 :-  अम्ल एवं क्षार की मात्रा को नापने के लिए एक पैमाना तय किया है जिसे पीएच कहते हैं । किसी पदार्थ मंे अम्ल या क्षार के स्तर को की मानक ईकाइ पीएच है । पीएच को मान 7 से अधिक अर्थात वस्तु क्षारीय है । शुद्ध पानी का पीएच 7 होता है । पीएच बराबर होने पर पाचन व अन्य क्रियाएं सुचारू रूप से होती है । तभी हमारे शरीर की उपापचय क्रिया सही होती है एवं हारमोन्स सही कार्य कर पाते हैं एवं उनका सही स्त्राव होता है । तभी शरीर की प्रतिरोध क्षमता बढ़ती है ।
बढ़ता प्रदूषण, रसायनों का सेवन व तनाव से शरीर में अम्लता की मात्रा बढ़ती है । तभी आजकल रक्त मे पीएच 7.4 से कम हो गया है । 7.4 आदर्श पीएच माना जाता है । इससे उपर पीएच का बढ़ना क्षारीय व इसका 7.4 से कम होना एसीडीक होना बताता है। आजकल हमारा रक्त का पीएच 6 या 6.5 रहता है । इसी से कैंसर जैसी घातक बीमारियां होती है । शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी कम हो गई है । शरीर में दर्द इसी से रहता है । पित्त का बढ़ना, बुखार आना, चिढ़ना सब अम्लता बढ़ने से होता है ।
निम्बू, अंगुर आदि फल खट्टे होते हैं लेकिन पाचन पर ये क्षारीय प्रभाव उत्पन्न करते हैं । इनके अन्तर स्वभाव से नही बल्कि पचने पर जो प्रभाव होता है उसके
 कारण क्षारीय माना जाता है । पाचन पर जो खनिज तत्व बनाते हैं व सब क्षारीय होते हैं ।
अम्लीय आहार – मनुष्य द्वारा निर्मित आहार प्रायः अम्लीय होता है जिससे एसीडिटी होती है । जैसे तले-भूने पदार्थ, दाल, चावल, कचैरी, सेव, नमकीन, चाय, काॅफी, शराब, तंबाकु, डेयरी उत्पाद, प्रसंस्कृत भोजन, मांस, चीनी, मिठाईयां, नमक, चासनी युक्त फल, गर्म दूध आदि के सेवन से अम्लता बढ़ती है ।
क्षारीय आहार  प्रकृति द्वारा प्रदत आहार (अपक्वाहार) प्रायः क्षारीय प्रभाव उत्पन्न करते हैं । जैसे ताजे फल, सब्जियां, अंकुरित अनाज, पानी में भीगे किशमिश, अंजीर, धारोष्ण दूध, फलियां, छाछ, नारियल, खजूर तरकारी, सुखे मेवे, आदि पाचन पर क्षारीय हैं ।ज्वारे का रस क्षारीय होता है । यह हमारे शरीर को एल्कलाइन बनाता है । शरीर के द्रव्यों को क्षारीय बनाता है । खाने का सोड़ा क्षारीय बनाता है ।
बीमारीयों की पहचान:- नाभी चिकित्‍सा में बीमारीयों को पहचानने की कई विधियॉ प्रचलन में है परन्‍तु मुख्‍य रूप से निम्‍न परिक्षण मूल रूप से किये जाते है । 
1- स्‍पर्श परिक्षण :- इस में मरीज के शरीर का स्‍पर्श परिक्षण किया जाता है जिससे शरीर का तापक्रम मालुम होता है , नाडी परिक्षण , दृष्टि परिक्षण मरीज को देखकर ,ऑखों का परिक्षण , जीभ तथा मल मूत्र का परिक्षण जो सामान्‍यत: उनके रंग गंध आदि से पहचाना जाता है । 
2- नाभी परिक्षण :- नाभी चिकित्‍सा में रोग को पहचान ने के लिये मूल परिक्षण है, नाभी परिक्षण, चूंकि नाभि चिकित्‍सकों का मानना है कि मनुष्‍य के समस्‍त प्रकार के रोगों का परिक्षण मात्र नाभी की बनावट उसकी धारीयों एंव नाभी स्‍पंदन से आसानी से पहचाना जा सकता है ।
नाभी चिकित्‍सा में सर्वप्रथम नाभी की बनावट उसके आकार प्रकार  एंव उसकी स्थिति से रोग की पहचान की जाती है ।
3-अम्‍ल क्षार परिक्षण :- इस परिक्षण से यह ज्ञात हो जाता है कि रोगी के शरीर में अम्‍ल व क्षारीयता की क्‍या स्थिति है जो रोग का मूल कारण है । यह परिक्षण उन रोगीयों पर ही किया जा सकता है जिसकी नाभी गहरी होती है एंव उसके अन्‍दर मैल की परत हो तथा उसमें से गंध आती हो । इसका मूल कारण यह है कि हमारे शरीर से निकलने वाले पसीन से शरीर के वे तत्‍व रस या रसायन की मात्राये निरंतर निकलती रहती है चूंकि शरीर में नाभी मात्र एक ऐसा अंग है जहॉ पर पसीना असानी से रूक जाता है एंव सूखने पर वह मैल की परत के रूप में शरीर से चिपका रहता है ,शरीर के तापक्रम एंव निरंतर सम्‍पर्क की वहज से जो तत्‍व शरीर से निकलते रहते है वह उचित परिणाम में सुरक्षित रहते है इससे कभी कभी नाभी में वैक्‍टेरिया भी पलने लगते है ये वेक्‍टेरिया शरीर को किसी भी प्रकार का नुकसान नही पहूचाते बल्‍की शरीर की सुरक्षा करते है इस मैल से एंव वैक्‍टेरिया से शरीर की अम्‍ल एंव क्षारीयता की स्‍थिति का अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है जैसे गंध से यदि गंध खटटी है तो अम्‍ल एंव यदि गंध कडुवी या कसैली है तो क्षारीय ।
लिटमस या हल्‍दी परिक्षण :- गहरी नाभी के मरीज की अम्‍ल क्षारीयता का पता लगाने के लिये उसकी नाभी पर पहले शुद्ध पानी डाले फिर उसके अंदर के मैल को किसी साफ वस्‍तु से इस प्रकार धोले ता‍कि अन्‍दर के मैल की परत उसमे अच्‍छी तरह से धुल जाये इसके बाद उसके अन्‍दर हल्‍दी से बनी रोली डाल दे यदि वह लाल हो जाये तो समक्षे शरीर क्षारीय है एंव यदि वह पीली हो जाये तो समक्षे शरीर में अम्‍ल की मात्रा बढ रही है जो घातक है ।
हल्‍दी की रोली की जगह आप चाहे तो लिटमस पेपर को डाल कर भी यह परिक्षण आसानी से कर सकते है ।
पर हल्‍दी शरीर से निकलने वाले इस तत्‍व में अम्‍ल व क्षार यह सूखा हुआ को कर
(अ):- नाभी की स्थिति :-यदि नाभी की स्थिति शरीर के मध्‍य में है तो ऐसा व्‍यक्ति निरोगी होता है । यदि नाभी मध्‍य में न होकर कुछ नीचे को है तो ऐसे व्‍यक्तियों को पेट के नीचे पाये जाने वाले अंगों से सम्‍बन्धित बीमारीयॉ अधिक होती है । ऊपर की तरुफ है तो उसे पेट के उपर पाये जाने वाले अंगों से सम्‍बन्धित बीमारीयॉ होती है ।
यदि नाभी की स्थिति बिलकुल मध्‍य में न होकर दायी तरुफ होती है तो ऐसे मरीजो को पेट पर पाये जाने वाले दॉये अंग से सम्‍बन्धित रोग हो सकता है ठीक इसी प्रकार यदि बॉये तरुफ है तो बॉये अंग से सम्‍बन्धित बीमारीयॉ हो सकती है ।
उपरोक्‍त स्थिति का अध्‍ययन पेट पर पाये जाने वाले वृत के अध्‍ययन से किया जा सकता है का आकार
(ब) नाभी की बनावट :-हर व्‍यक्तियों की नाभी की बनावट अलग अलग होती है यहॉ तक की जुडवा संतानों के शरीर की बनावट भले एक सी हो परन्‍तु उनके नाभी का आकार प्रकार व बनावट अलग अलग होगी ,ठीक उसी प्रकार से जैसे हाथों की रेखाये हर व्‍यक्तियों की अलग अलग होती है । नाभी के आकार प्रकार एंव बनावट से नाभी चिकित्‍सक रोग की पहचान करते है ।
यदि नाभी ऊपर को डण्‍टल की तरह से उठी हुई है तो ऐसे व्‍यक्तियों को गैसे अपच आदि की शिकायत हो सकती है । अन्‍दर को धॅसी हुई गहरी नाभी इस प्रकार के रोगी को स्‍वस्‍थ्‍य माना जाता है परन्‍त उक्‍त दोना बनावट के साथ अन्‍य स्थितियों जैसे धारीयों की बनावट एंव नाभी के आकार को भी आधार माना जाता है ।
(स)नाभी धारीयॉ या रेखा:- इसमें नाभी धारीयॉ एंव नाभी बनावट मुख्‍य रूप से है जैसे नाभी की बनावट में यदि नाभी का आकार जिस ओर होता है उस तरुफ के अंग रोगग्रस्‍त होते है इसी प्रकार नाभी धारीयॉ की स्थिति का भी पता लगाया जाता है जैसे नाभी धारी या जिसे नाभी रेखा भी कहते है । यदि नाभी धारी की बनावट या स्थिति जिस ओर इसारा करती है उसी तरुफ के अंगों से सम्‍बन्धित रोग होता है । यह बडी ही सरल विधि है । परन्‍तु इसे बारीकी से समक्षना चाहिये तभी रोग का परिक्षण का परिणाम उचित होगा । इस परिक्षण हेतु नाभी वृत परिक्षण चार्ट को देखिये ।
(द) नाभी धारीयों का रंग :- नाभी धारीयों के मध्‍य रंग व गंध पाई जाती है , दक्ष नाभी चिकित्‍सा रोगों की पहचान नाभी धारीयों के रंग व गंध से आसानी से कर लेता था । नाभी के अन्‍दर से गंध का रोग पहचान में बडा महत्‍व है चूंकि जैसा कि आप सभी इस बात को अच्‍छी तरह से जानते है कि नाभी ही एक ऐसा अंग है जिसमें शरीर से निकलने वाला पसीना या व्‍यर्थ पदार्थ आसानी से कई कई दिनों तक छिपे रहते है यहॉ तक की कई व्‍यक्तियों की नाभी में जो पदार्थ छिपे रहते है वह उनके जन्‍म के समय से ही छिपे रहते है फिर शरीर के तापमान आदि की वहज से उसमें ऐसे वेक्‍टेरिया पनपने लगते है जो शरीर के रक्षक होते है इन वेक्‍टेरिया से शरीर को नुकसान नही होता ।
                              
      नाभी की बनावट हिलमोजी साईस
   Helum हिलम याने गढठा या छिद्र इसे hilus भी कहते है ।
 Ridge रिजिस रिजिस या धारीयॉ जो शरीर में प्राय: हाथ पैरों पर पाई जाती है परन्‍तु यह शरीर के अन्‍य भागों में भी पाई जाती है । जिस प्रकार किसी भी मनुष्‍य के हाथ की धारीयॉ एक दूसरे से नही मिलती ठीक उसी प्रकार नाभी धारीयॉ भी किसी भी व्‍यक्यों में एक सी नही होती ।
 Helix हिलेक्‍स इसकी बनावट पेचदार या धुमती हुई आकृति की होती है । Apex शीर्ष अपेक्‍स की बनावट नोक के समान या शीर्ष की तरह से उठी हुई होती है । इस तरह की नाभी  डण्‍टल की तरह ऊपर को निकली हुई होती है
Umbo गाठ यह प्राय: गाठों की तरह की अकृति की होती है । इस प्रकार की नाभी गहरी न हो कर उपर निकली हुई गाठ की तरह से दिखती है 
Nodeगाठ यह भी  Umbo की तरह फूला हुआ भाग होता है ।
Arch धूमती हुई आकृति शरीर का कोई भी गाठ या छेद्र प्राय: जो धुमाव लिये हुऐ आकृति का होता है उसे आर्च कहते है ।
Deep डीप या गहराई ऐसी नाभी जो किसी गडडे की तरह से गहरी होती है उसे डीप या गहरी नाभी कहते है ।
आई शेप( ऑखों की आकृति ):- इस प्रकार की नाभी अधिक गहरी नही होती परन्‍तु इसकी आकृति को ध्‍यान से देखने पर ऐसा लगता है जैसे ऑखों का आकार हो । इस प्रकार ऑखों की अकृति वाली नाभी भी दो प्रकार की होती है । एक में ऑखों के आकार के अन्‍दर धारीयॉ स्‍पष्‍ट रूप से दिखलाई देती है तो दूसरे प्रकार की नाभी में धारीयॉ नही दिखती इस प्रकार की नाभी गहरी होती है ।


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