शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2017

नाभी संतुलन एंव उपचार

                              नाभी संतुलन एंव उपचार
नाभी पर 72000 नाडियों का केन्‍द्र है ! समस्‍त संसूचना तंत्र एंव नर्वस सिस्‍टम इस क्षेत्र से होकर गुजरती है गर्भावस्‍था में शिशू का विकास नाभी नाभ से होता है बच्‍चे के जन्‍म के बाद उसका सम्‍पर्क गर्भनाल से काट कर अलग कर दिया जाता है। गर्भनाल के विच्‍छेदित होते ही बच्‍चा स्‍वंय जीवित रहने हेतु सक्‍क्षम हो जाता है नाभी को काटने के बाद उसका विकाश शरीर तथा बृहमाण (वाहय वातावरण ) के मिश्रत सहयोग से होता है । वैज्ञानिकों का मानना है कि स्‍टैम सैल्‍स के पाच अनुवाशिक जानकारीयॉ संगृहित होती है । स्‍टैम सैल्‍स की प्रत्‍येक जीवित कोशिकाओं से कई बीमारीयों के उपचार की संभावनाओं का दावा किया जा रहा है । स्‍टैम सेल्‍स या नाभी कोशिकाये अनुवांशिक सूचना का भण्‍डारण है । यह बात आज वैज्ञानिक समुदायों के लम्‍बे परिक्षणों व खोज का नतीजा है । परन्‍तु आज से सदियोंं पूर्व विश्‍व में प्रचलित विभिन्‍न चिकित्‍सा तथा उपचार पद्धतियों में नाभी के महत्‍व पर उपयोगी जानकारीयॉ दी गई थी । वैज्ञानिक प्रमाणों के अभाव एंव मुख्‍यधारा की चिकित्‍सा पद्धतियों के वार्चस्‍वपूर्ण रवैये ने इसे हॉसिये पर रख दिया धीरे धीरे इसका महत्‍व कम होने लगा था । परन्‍तु जैसे ही हमारे वैज्ञानिक एंव चिकित्‍सा समुदायो को इसके महत्‍व के बारे मे पता चला तो पुन: इस पर अनुसंधान हुऐ एंव आशानुरूप परिणामों ने इसके महत्‍व को स्‍वंय प्रचारित किया ।
   हमारे प्राचीन ग्रन्‍थों में नाभी स्‍पंदन से रोगों की पहचान एंव निदान का उल्‍लेख है । वही नाभी के आकार प्रकार बनावट तथा नाभि धारीयों को देखकर रोगों के बारे में तथा रोग स्‍थति के बारे में जानकारीयॉ दी गयी है । सामुद्रिक शास्‍त्र जो ज्‍योतिष एंव भविष्‍यवाणी का अति प्राचीन शास्‍त्र है । इस शास्‍त्र में व्‍यतियों के नाभि के आकार प्रकार उसकी बनावट तथा धारियों को देखकर व्‍यक्‍तियों के भविष्‍य के एंव उसकी बीमारीयों के बारे में बतलाया गया है । आयुर्वेद शास्‍त्र में रोग के तीन प्रमुख करण बात पित और कफ माने गये है एंव इसका परिक्षण नाडी परिक्षण से होता है नाडी परिक्षण का विद्वान परिक्षणकर्ता केवल नाभि नाडी के परिक्षण से रोगों को आसानी से पहचान कर लेता है एंव इन त्रिदोष का निदान भी नाभी स्‍पंदन से कर रोगी को रोगमुक्‍त कर देता है । नाभी के महत्‍व को पहचान कर चाईनीज परम्‍परागत चिकित्‍सा एक्‍युपंचर की एक शाखा है जिसे नेवल एक्‍युपंचर कहते है इसमें केवल नाभी और उसके आस पास के पाईन्‍ट पर बारीक सूईयों को चुभाकर समस्‍त प्रकार के रोगों का निदान किया जाता है । इसी देश की एक और उपचार विधि है‍ जिसे ची नी शॉग कहते है इसमें भी नाभी का परिक्षण कर पेट में पाये जाने वाले रोगग्रस्‍त अंग को टारगेट कर मिसाज तकनीकी से रोग का उपचार किया जाता है । आजकल इस उपचार के आशानुरूप परिणामों ने इसे काफी लोकप्रिय बना दिया है ।इस उपचार को स्‍वस्‍थ्‍य अवस्‍था में लेने से पेट के अंतरिक अंग मजबूत होते है एंव व्‍यक्‍ति स्‍वस्‍थ्‍य निरोगी जीवन लम्‍बे समय तक जीता है वृद्धावस्‍था देर से आती है स्‍वस्‍‍थ्‍य व्‍यक्‍तियों द्वारा इस उपचार को लेना याने सीधे अर्थो में शरीर की सर्विसिंग कराना है । ची नी शॉग उपचार से सौर्न्द्ध समस्‍याआं का निदान अत्‍याधुनिक ब्‍युटी पार्लर आदि में बडे ही आशा और विश्‍वास के साथ किया जा रहा है ।
चूंकि इसमें सौर्द्धय सम्‍बन्धित समस्‍त समस्‍याओं का उपचार उपलब्‍ध है ।
 नाभी परिक्षण से रोग की पहचान
1- बीमारी की अवस्‍था में नाभी स्‍पंदन अपने स्‍थान से खिसक जाता है ।
2- नाभि पर दबाब देने से रोगावस्‍था में इस प्रकार महसूस होगा , जैसे वहॉ पर पानी का छोटा सा गोला हो यह गोला यदि नीचे की तरफ है तो इससे नीचे के अंग जैसे मूत्राश्‍य ,गर्भाश्‍य एंव किडनी प्रभावित होती है । जब यह ऊपर की तर फ हो तो फेफडे व श्‍वसन तंत्र प्रभावित होता है । दाये या बाये तर फ महसूस होने पर वहॉ पर पायये जाने वाले अंग प्रभावित होते है । जिन्‍हे कब्‍ज या पेट सम्‍बन्धित बीमारीया होती है उनके दाये बाये यह महसूस होता है ।
3-नाभि स्‍त्राव अर्था नाभीगंध यदि खटटी हो तो उसे कफज रोग होगा यदि यह नाभीगंध मीठी गंध लिये हो तो ऐसे रोगीयों को अत्‍याधिक पसीने की शिकायात होगी इन्‍हे मधुमेह का रोग होगा इनके धॉव आदि नही भरेगे । कडवी गन्‍ध बात रोग । नाभी मैल का रंग पीला है तो उसे कफ से सम्‍बन्धित बीमारीयॉ अधिक होगी यदि यह रंग एकदम काला है तो बात से सम्‍बन्धित बीमारीयॉ होगी यदि यह रंग रक्‍ज याने लाल रंग का है तो उसे पित से सम्‍बन्धित बीमारीयॉ अधिक होगी ।

नाभि का संतुलन- मधुमेह के रोगी का नाभि केन्द्र अपने स्थान पर प्रायः नहीं रहता, जिससे पेन्क्रियाज को आवश्यक प्राण ऊर्जा नहीं मिलती। अतः उसकी सक्रियता कम हो जाती है। नाभि में हमारे प्राणों का संचय होता है एवं यही से शरीर में कार्यरत प्राण ऊर्जाओं का नियंत्रण होता है। नाभि के स्पन्दन को अपने स्थान पर लाने के लिये भारत में अनेकों प्रचलित विधियां है। अतः किसी भी विधि द्वारा नाभि क्षेत्र में एकत्रित तत्त्वों को दूर करने एवं नाभि केन्द्र को अपने स्थान पर स्थिर रखने से पेन्क्रियाज को आवश्यक प्राण ऊर्जा मिलने लगती है एवं वह आवश्यकतानुसार इंसुलिन बनाने लगता है।

 पैर, गर्दन एवं मेरूदण्ड का संतुलन- हमारा शरीर दायें-बायें, बाह्य दृष्टि से लगभग एक जैसा लगता है परन्तु मधुमेह एवं अन्य रोगों के कारण कभी-कभी एक पैर से छोटा हो जाता है तो कभी-कभी मेरुदण्ड के मणकों के पास विजातीय तत्त्वों के जमा हो जाने अथवा नाड़ी के दब जाने या मणके के अपने स्थान से हट जाने से प्राण ऊर्जा का प्रवाह शरीर में बाधित होने लगता है तथा नाड़ी संस्थान बराबर कार्य नहीं करता। जिस प्रकार खेत में बीच बोने से पूर्व खेत की सफाई, उसमें हल जोतना और खाद देना आवश्यक होता है, ठीक उसी प्रकार पैर, गर्दन एवं मेरुदण्ड को संतुलित करने से नाड़ी संस्थान बराबर कार्य करने लगता है एवं उपचार प्रभावशाली हो जाता है। नाड़ी तंत्र के ठीक होते ही मधुमेह का रोग चंद दिनों में ही बिना दवाई नियंत्रित हो जाता है। Visit http://www.chordiahealthzone.in To Maintain Good Health & Effective Treatment & Be Your Own Doctor.

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