गुरुवार, 12 सितंबर 2019

आईडोलोजी (ऑखों के परिक्षण से बीमारीयों की पहचान)


आईडोलोजी (ऑखों के परिक्षण से बीमारीयों की पहचान)
   बीमारीयों की स्थिति में शारीरिक परिवर्तन सामान्‍य सी बात है परन्‍तु लम्‍बे समय से शरीर परिक्षणकर्ताओं द्वारा सूक्ष्‍म शारीरिक अंगो के परिक्षणों का परिणाम यह बतलाते है कि बीमारी व स्‍वस्‍थ्‍यता की दशा में सामान्‍य सा शारीरिक परिवर्तन तो प्रथम दृष्‍य परिणाम है , यदि सूक्ष्‍मता से शरीर के अन्‍य अंगों के परिक्षण किये जाये तो इनमें रोगानुकूल परिवर्तन देखे जा सकते है । उपतारामण्‍ड परिक्षण द्वारा रोगों की पहचान, जिसे सामान्‍यत: ऑखों को देख कर बीमारीयों की पहचान कहॉ जाता है । इसकी खोज डॉ0 पीजले ने की थी । इसी प्रकार डॉ0 मैकोले सहाब का कहना था कि यदि किसी व्‍यक्ति के शरीर को बचपन में काट दिया जाये तो उसका विकास क्रम शरीर के पोषण तत्‍व एंव वाहय जगत के क्रिया कलापों के साथ होता है उन्‍होने कहॉ मनुष्‍य जब मॉ के गर्भ से बाहर दुनिया में आता है तब उसका सम्‍पर्क नाभी को काट कर अलग कर दिया जाता है । अब उस बच्‍चे का सम्‍पर्क मॉ से अलग हो जाता है तथा उस कटे हुऐ भाग का निमार्ण कार्य उसके शरीर तथा बृहमाण के सम्‍पर्क से होना प्रारम्‍भ हो जाता है जिसमें प्रथम उसके अपने शरीर के पोषण, उर्जा से उस कटे हुऐ भाग की मरम्‍मत का कार्य प्रारम्‍भ होता है इसके साथ वाहय जगत के सम्‍पर्क के कारण उसके मरम्‍मत कार्य में बृहमाण्‍ीय सम्‍पर्क का भी प्रभाव पडता है । इस मरम्‍मत कार्य में उसके शरीर की संसूचना प्रणाली की भी अहम भूमिका होती है । जो जीन्‍स की यथासंभव जानकारी जिसमें वंशानुगत बीमारीयॉ, व्‍यवहार, शारीरिक संरचना आदि की जानकारी ,का प्रतिनिधित्‍व कर उसे इस भाग में संगृहित करता है । उसके इस कटे हुऐ भाग की मरम्‍मत कार्य में क्ष्ध्परिक्षणों बीमारीयों का सम्‍बन्‍ध ज्‍योतिष से रहा है ,ज्‍योतिष से रोगों की पहचान एंव निदान का उल्‍लेख प्राचीन आर्युवेद ,प्राचीन यूनानी चिकित्‍सा ,तिब्‍बती ,चाईनज एंव योगा एंव अध्‍यात्‍म में मिलता है । पश्चिमोन्‍मुखी चिकित्‍सा एंव शिक्षा ने इस जन कल्‍याणकारी वि़द्या के पतन में अपनी एक अहम भूमिका का निर्वाह किया है । सदियों से चली आई कई जनकल्‍याणकारी जानकारीयॉ आज लुप्‍त होने की कगार पर है ऐसी जन उपयोगी ज्ञान का संरक्षण व संवर्धन तो दूर की बात है । इसकी उपेक्षा कर इसे अवैज्ञानिक एंव तर्कहीन कहने में हमारे पश्चिमोमुखी शिक्षा व सभ्‍यता का बडा हाथ रहा है ।
 आवश्‍यकता ही आविष्‍कार की जननी है , ज्ञान से विज्ञान बना है न कि विज्ञान से ज्ञान फिर हमारे वैज्ञानिक व पश्चिमोमुन्‍खी सभ्‍य पढे लिखे समाज ने इस प्रकार की जन उपयोगी ज्ञान को बिना किसी प्रमाण के तर्कहीन एंव अवैज्ञानिक तो कह दिया परन्‍तु इसकी उपयोगिता एंव आशानुरूप परिणामों को देखा तो फिर इस पर अनुसंधान व वैज्ञानिक परिक्षण हुऐ तब जाकर इस पश्चिमोन्‍मुखी समाज ने इसे स्‍वीकार किया  इसके कुछ प्रत्‍यक्ष उदाहरण है योगा , प्राक़तिक जीवन प्राक़तिक सानिध्‍य ,बीमारीयो का प्रमुख कारण है आज हम सभी प्राक़तिक के सानिध्‍य से कोसों दूर होते चले गये है चूॅकि कहॉ गया है कि प्राणी की उत्‍पत्‍ती प्राक़तिक से होती वह एक बहमणीय जीव है ।प्राकतिक के सानिध्‍य में ही उसका जीवन निरोगी दीर्धायु होता है ।
  आज जब हम सभी किसी न किसी रूप से पश्चिमी सभ्‍यता व शिक्षा तथा चिकित्‍सा के दास बन कर रह गये है , सधन गगन चुम्‍बकीय मकानों में हमारा जीवन यापन होता है । हवा पानी एंव खादय सामग्रीयॉ पूर्णत: प्रदूषित हो चुकी है । इस बात को कहने मे किसी प्रकार की अतिश्‍योक्ति न होगी कि आज हमारे जीवन के प्रमुख आधार पंच तत्‍व है , जिससे प्राणी की उत्‍पति होती है एंव मत्‍यु पश्‍चात वही इन्‍ही तत्‍वों में विलीन हो जाता है , ये सभी प्रदूषित हो चुकी है । उर्वक विशैले खाद जिसका प्रयोग कृषि कार्यो में बढ चढ कर हो रहा है एंव इसके घातक परिणाम भी सामने आने लगे है । जल शोधन में प्रयोग किये जाने वाले रसायनों ने भी जीवन व स्‍वास्‍थ्‍य पर प्रश्‍न चिन्‍ह लगा दिया है । वायु प्रदूषण के विषय में कुछ लिखना सीधे अर्थो में सूरज को रोशनी दिखलाना है ।
 आज से वर्षो पूर्व जब विज्ञान अपने शैशवास्‍था में था , उसके पहले से ही जनोपयोगी कल्‍याणकारी कुछ कहावते प्रचलन में थी एंव उन कहावतों के आशानुरूप परिणामों ने उन्‍हे जन उपयोगी बना दिया था , उनमें भडरी जी की कहावते व दोहे किसी विज्ञान से कम नही है । उनमें एक कहावत है जब चीटी अण्‍डा ले कर चलती है एंव हाथी अपने सिर पर धूल डालता है । इससे पानी गिरने का अनूमान हो जाता है । प्राकृतिक से उत्‍पन्‍न प्राणीयों को जीवित रहने के लिये ईश्‍वर ने असीम  शक्तियॉ प्रदान की है । परन्‍तु मनुष्‍य एक सुरक्षित समाज में रहता है ,परन्‍तु अन्‍य प्राणीयों को अपने जीवन व स्‍वास्‍थ्‍य की सुरक्षा हेतु स्‍वय सजग रहना होता है । इसलिये वह प्राकतिक अपरदाओं से बचने व स्‍वास्‍य की सुरक्षा हेतु स्‍वय सजग रहता है । भूचाल हो या शैलाब , प्राकृतिक अपदा का मुक प्राणीयों को पूर्वभास हो जाता है , पक्षी अपना बसेरा छोड देती है ,घोडा हिन हिनाने लगता है ,गाय रम्‍भाने लगती है । ये बाते सदियों से कहावतों के रूप में प्रचलन में रही है और इसका लाभ भी सदियों से मानव समुदाय उठाते आया है । इन कहावतों को पहले तर्कहीन अवैज्ञानिक कहने वाले समाज ने जब इसका वैज्ञानिक परिक्षण किया तो पाया कि उक्‍त परस्थितियों के निर्मित होने पर प्राणीयों के शरीर में रसायनिक परिवर्तन होते है , इसका परिणाम है कि उन्‍हे इस प्रकार की अप्रिय धटनाओं की जानकारीयॉ हो जाती है । अत: पश्चिमी ज्ञान विज्ञान ने इसे स्‍वीकारा इसके आशानुरूप परिणामों की वजह से आज इसका उपयोग भावी संकट काल या भावी दुर्धटनाओं को टालने में किया जाने लगा है । मिर्गी, हाईब्‍लड प्रेशर, मधुमेह, जैसी बीमारीयों में जब कभी विषम परस्थितियॉ उत्‍पन्‍न होने की संभावना रहती है , ऐसी परस्थितियों का पूर्वानुमान उनके पालतु जानवरों को हो जाता है एंव समय रहते वे अपने मालिक को अगाह कर उनका जीवन बचाने में सहायता करते है । इसीलिये मिर्गी के दौरे पडने या हाई ब्‍लड प्रेशर ,मधुमेह की स्थिति में बेसुध होने के पूर्व ये पालतू जानवर उन्‍हे सचेत कर देते है । वैज्ञानिकों ने इनकी सेवायें लेने की सलाह दी है और इसके परिणाम आशानुरूप ही मिले है ।
  आज से वर्षों पूर्व जब उपचार पद्धतियॉ अपने उदभव काल में थी , उस समय विश्‍व के हर कोने में रोग परस्थितियों के ज्ञान के आधार पर प्राकृतिक संसाधनों से प्राक़तिक सुलभ उपचार किये जाते रहे है , निरंतर उपचारों के आशानुरूप परिणामों की वजह से कुछ उपचार विधियॉ प्रभावों में आई , भले ही इस प्रकार के उपचारों का कोई वैज्ञानिक आधार उस समय न रहा हो , परन्‍तु अपनी उपयोगिता की वजह से एंव सफल परिणामों की वजह से उसने अपने ज्ञान से एक मुंकाम हांसिल अवश्‍य कर लिया था । अब ज्ञान के बाद ही तो विज्ञान का कार्य शुरू होता है , मात्र वैज्ञानिक परिणामों के अभाव में जीवन को खतरे में तो नही डाला जा सकता , मरता क्‍या न करता , यदि उसकी जान बचती है तो वह कुछ भी करने को तैयार है , और होता भी यही रहा है ।
  ज्ञान के बाद विज्ञान का आवष्‍कार हुआ विज्ञान के अविष्‍कार के पहले भी सफल उपचार होते रहे है । अत: हमें यह नही भूलना चाहिये कि विश्‍व प्रचलित विभिन्‍न प्रकार की उपचार विधियॉ वैज्ञानिक प्रमाणों के अभाव में अनुपयोगी है , यदि उनके परिणाम आशानुरूप है ,तो उसे अपनाने में हर्ज ही क्‍या है  , हम यह नही कहते कि उस जमाने की कई उपचार विधि अवैज्ञानिक , तर्कहीन व परिष्‍कृत थी ,परन्‍तु सभी नही । वैज्ञानिक समुदाय अपने पश्चिमोमुन्‍खी विचार धारा से हट कर जन कल्‍याणकारी भावना से इस पर अनुसंधान करे तभी सब का भला हो सकता है ,बिना परिणामों के किसी भी उपचार विधि या चिकित्‍सा पद्धति को गलत कहना मानव कल्‍याण के हित में नही है । परन्‍तु व्‍यवसायिक प्रतिस्‍पृद्धा ने आज हमे अलग अलग समूह, वर्गो में विभाजित कर सोचने पर मजबूर कर दिया है ।
                                 प्राचीन शास्‍त्र
 किसी भी राष्‍ट्र या समुदाय विशेष के प्राचीन ग्रन्‍थ उस राष्‍ट्र की अमूल्‍य धरोहर है सदियों की खोज निरंतर प्रयासों के परिणाम स्‍वरूप प्राप्‍त ज्ञान का संकलन जब किसी गृन्थ या शास्‍त्र का मूर्त रूप लेकर जन कल्‍याण की उपयोगिता को सिद्ध करने में सामर्थ होती है, तभी उसे प्रमाणिकता मिलती है और वह प्रमाणित ग्रन्‍थ कहलाती है ।
  पश्चिमोन्‍मुखी ज्ञान ,विज्ञान व सभ्‍यता के अंधानुकरण की महामारी के प्रकोप ने कई प्राचीन गृन्‍थों व मान्‍यताओं की प्रमाणिकता पर समय समय पर प्रश्‍न चिन्‍ह खडे कर ,उन्‍हे अवैज्ञानिक तर्कहीन कहॉ । पश्चिमोन्‍मुखी ज्ञान विज्ञान के विकास की हम आलोचना नही करते, इसके विकास ने जन कल्‍याण में अपनी अहम भूमिका का निर्वाह किया है । परन्‍तु यह आज भी सम्‍पूर्ण नही है तो फिर प्राचीन शास्‍त्रों के ज्ञान मान्‍यताओं को बिना किसी प्रमाण के अवैज्ञानिक एंव तर्कहीन कहने का इन्‍हे अधिकार नही है । यह अधिकार व विषमता प्रतिस्‍पृद्ध , वर्ग स्‍पृद्ध ,व्‍यवसायीक प्रति स्‍पृर्द्ध की बीमार मानसिकता का परिणाम है । एक चिकित्‍सा पद्धति का चिकित्‍सक किसी दूसरी चिकित्‍सा पद्धति के सिद्धान्‍त व उसकी उपयोगिता को हमेशा सन्‍देह की दृष्टि से देखते आया है , ठीक इसी प्रकार पश्चिमी ज्ञान विज्ञान व सभ्‍यता का अंधानुकरण करने वाले व्‍यक्तियों के गले से प्राचीन अमूल्‍य गृन्‍थों की मान्‍यतायें व उपयोगिताये उसके गले से नही उतरती इसके उपयोगी प्रमाणों की वास्‍तविकता को परखना तो दूर की बात है इसे मानने के दु:साहस के परिणामों से कही वह भी अशिक्षित असभ्‍य वर्ग की कतार में खडा न हो जाये इस डर से वह इन सचाईयों से कोसों दूर रहना ही उचित समक्षता रहा एंव इससे दूर होता चला गया ।

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