विधि:-
पेट के अनावश्य मोटापे को कम करने के लिये आप को एक नाडा या आज कल बाजारों में
रबड या इलैस्टिक मिलती है उसे नाभी से पेट पर आडी रेखा में बॉधना है । इसके नाभी
से पेट पर आडी रेखा में बॉधने का मूल उदेश्य यह है कि इसे इतना दबाब देते हुऐ
बॉधे ताकि पेट पर किसी प्रकार की परेशानी न हो पेट पर पाये जाने वाले एस टी-25
बिन्दू इस दबाब की वजह से सक्रिय हो जाते है । एक्युपंचर चिकित्सक इस एसटी-25
पाईट पर एक्युपंचर की बारीक सूईयॉ चुभा कर उपचार करते है एक्युप्रेशर चिकित्सक
इस पाईन्ट पर गहरा दबाब देकर पेट के अनावश्यक मोटापा को कम करते है । पेट व नाभी
से आडी रेखा में नाडे के दबाब से पेट की अनावश्यक चर्बी धीरे धीरे कम होने लगती
है इस नाडे को पेट पर लम्बे समय तक बॉधे रहना है इसे तीन माह से छै: माह तक बॉधने
से उचित परिणाम मिलने लगते है । पेट की चर्बी कम हो जाती है एंव पेट स्लीम सुन्दर
शरीर के अनुपात में आ जाता है आप भी इस सरल प्राकृतिक विधि को अपना कर अपने पेट के
अनावश्यक मोटापे से निजात पा सकते है ।
आप हमारे द्वारा संचालित एक्युपंचर,नेवल एक्युपंचर,नाभी स्पंदन से रोग की पहचान व उपचार ,इलैक्ट्रोहोम्योपैथिक ,ची नी शॉग उपचार,ब्यूटी क्लीनिक जिसमें ब्यूटी पार्लस का एडवांस कोर्स सम्मलित है ,इन सभी कोर्स को आप घर बैठे हमारी ई मेल सेवा के माध्यम से सीख सकते है । हमारे सारे कोर्स बिलकुल नि:शुल्क है
गुरुवार, 12 सितंबर 2019
पेट का अनावश्यक मोटापा
नेवल एक्युपंचर
एक्युपंचर चिकित्सा चीन गणराज्य की
उपचार विधि है, इस चिकित्सा पद्धति में सम्पूर्ण शरीर पर एक्युपंचर पाईन्ट
पाये जाते है , इन निर्धारित बिन्दूओं का चयन रोगानुसार कर चिकित्सक इन पाईन्स
पर बारीक सूईया चुभा कर उपचार करते है । सम्पूर्ण शरीर में हजारों की सख्ॅया में
पाये जाने वाले एक्युपंचर पाईन्स के निर्धारण में चिकित्सकों का काफी कठनाईयॉ
होती है । नेवल एक्युपंचर, एक्युपचर चिकित्सा की नई खोज है, इसके आविश्कार का श्रेय कास्मेटिक सर्जन मास्टर आफ चॉग के
मेडिसन के प्रोफेसर योंग क्यू को जाता है । यह चाईना के एक्युपंचर फिलासफी पर
आधारित है, जो टी0सी0एम0 अर्थात ट्रेडीशनल चाईनीज मेडिसन कहलाती है । जैसा कि हम सभी इस बात को अच्छी तरह से जानते है कि एक्युपंचर चिकित्सा
में शरीर पर हजारों की संख्या में एक्युपंचर पाईन्ट पाये जाते है एंव रोग
स्थिति के अनुसार चिकित्सक इन पाईन्ट की खोज करता है फिर उस निश्चित पाईन्ट पर
एक्युपंचर की बारीक सूईयों को चुभा कर उपचार किया जाता है । एक्युपंचर के हजारों
पाईन्ट को खोजना फिर उक्त निर्धारित पाईन्ट पर रोग स्थिति के अनुसार दस पन्द्रह
बारीक सूईयो को चुभोना एक जटिल प्रकिया है । डॉ योंग क्यू ने महसूस किया कि नेवल
व उसके आस पास के क्षेत्रों पर सम्पूर्ण शरीर के एक्युपंचर पाईन्ट पाये जाते है
, जिन्हे खोजना आसान है साथ ही किसी भी प्रकार के रोग उपचार हेतु कम से कम सूईयों
को चूभाकर सफलतापूर्वक उपचार किया जा सकता है ,उन्होने पाया कि पेट पर काफी
मात्रा में चर्बी या फेट होता है इससे वहॉ पर सूई को आसानी से चुभाया जा सकता कि
उक्त फेट पर किसी प्रकार का खतरा नही होता एंव सूई चुभाने से र्दद बिल्कुल नही
होता । उन्होने सन 2000 में अपने इस नये शोध को कई पत्र पऋिकाआं में प्रकाशित
कराया साथ ही उन्होने इसका प्रशिक्षण कार्य प्रारंम्भ कर इसके परिणामों से
चिकित्स जगत को परिचित कराया । एक्युपंचर
चिकित्सको को पूर्व की तरह से सम्पूर्ण शरीर में हजारों की संख्या में
पाये जाने वाले एक्युपंचर पाईन्ट के साथ कम से कम सूईयों को चुभा कर उपचार करने
में काफी सफलता मिली है । नेवेल एक्युपरचर नाभी व इसके चारो तरु के क्षेत्रों पर
कम से कम सूईयो को चुभाकर उपचार किया जाता है । इस उपचार विधि का एक लाभ और भी था
जो एक्युपंचर चिकित्सक वर्षो से महसूस करते आये
है जैसा कि रोग स्थिति के अनुसार सम्पूर्ण शरीर में कही भी एक्युपंचर पाईन्ट
पाये जाते है उपचार हेतु इन पाईन्ट पर सूईयॉ चुभाकर उपचार किया जाता है ।
कभी कभी कई ऐसे भी पाईन्ट होते है जिन पर सूईयों का लगाना काफी खतरनाक होता
है ,जैसे गले के पास या ऑखों के चारों तरु या फिर सीने के पास खोपडी या कान के
पिछले भागों में ,या ऐसे स्थानों पर जहॉ पर मसल्स कम या त्वचा तुलायम होती है ,
कई नाजुक स्थानो पर । नेवल एक्युपंचर में जैसा कि पहले ही बतलाया जा
चुका है कि इसमें केवल नाभी एंव नाभी के आस पास चारों तरफ पाये जाने वाले पाईन्ट
पर सूईया चुभाकर उपचार किया जाता है । पेट पर नेवल (नाभी) के चारों तरफ प्रर्याप्त
मात्रा में मसल्स होते है एंव इस क्षेत्र में खतरनाक हिस्से नही होते ,अत: इस
भाग पर पंचरिंग करने से किसी भी प्रकार का खतरा नही होता । जैसा कि एक्युपंचर चिकित्सा
में सम्पूर्ण शरीर पर हजारों की संख्या में पाये जाने वाले एक्युपंचर पाईन्ट को खोजने में काफी दिक्कत होती है
परन्तु नेवल एक्युपंचर में नाभी एंव उसके चारो तरफ सम्पूर्ण शरीर के पाईन्ट
आसानी से प्राप्त हो जाते है ,एक्युपंचर उपचार में लम्बी बडी बारीक सूईयों का
प्रयोग किया जाता है परन्तु नेवल एक्युपंचर में प्रयोग की जाने वाली सूईया बहुत
बारीक होने के साथ उसकी लम्बारई आधे से एक इंच होती है ,एक्युपंचर उपचार में दस
पन्द्रह सूईया या रोग स्थिति के अनुसार और भी अधिक उपयोग की जाती है परन्तु नेवल
एक्युपंचर में मात्र एक दो या अधिकतम दस सूईयो का प्रयोग किया जाता है । नेवल एक्युपंचर
में सूईयो को लगाने से पहले पेट पर कितनी चर्बी है इसका परिक्षण कर चर्बी के
अनुपात में पंचरिंग की जाती है ताकि पेट के अंतरिक अंगों को किसी प्रकार की क्षति
न हो
नेवल एक्युपंचर चिकित्सकों का मानना है कि
शरीर के सम्पूर्ण अंतरिक एंव वाहय अंगों के चैनल इस पाईन्ट से हो कर गुजरते है
जैसा कि हमारे प्राचीन आयुर्वेद में कहॉ गया है कि नाभी से हमारे शरीर की 72000
नाडीयॉ निकलती है । नेवल एक्युपंचर सरल होने के साथ पंचरिग सुरक्षित है एंव उपचार
हेतु कम से कम बारीक सूईयों का प्रयोग किया जाता है सूईयों को चुभाने पर र्दद बिल्कुल
नही होता एंव परिणाम जल्दी एंव आशानुरूप मिलते है । इस चिकित्सा पद्धति की समस्त जानकारीयॉ गूगल
साईड पर नेवल एक्युपंचर टाईप कर इसकी फाईले व वीडियों आदि देखे जा सकते है । नेवल
एक्युपंचर में सौन्द्धर्य समस्याओं के बहुत अच्छे परिणामों को देखते हुऐ आज कल
इसका प्रयोग ब्युटी पार्लर व क्लीनिक आदि में होने लगा है । कई चिकित्सा
पद्धतियों के चिकित्स इसका उपयोग अपने चिकित्सालयों में सफलतापूर्वक कर रहे है ।
एक्युपंचर की एक शाखा है होम्योपंचर जिसमें होम्योपैथिक की शक्तिकृत औषधियों को
डिस्पोजेबिल बारीक सूईयों में भर कर एक्युपंचर पाईन्ट पर लगा कर उपचार किया
जाता था अब होम्योपंचर चिकित्सको ने नेवल एक्युपंचर के सफल परिणामों को देखते
हुऐ नेवल एक्युपंचर पाईन्टस पर इसका प्रयोग कर सफलता प्राप्त कर रहे है । कई
समाज सेवीय संस्थाये इसका पशिक्षण नि:शुल्क उपलब्ध कराती है । नेवल एक्युपंचर
का अध्ययन घर बैढे करने हेतु आप इस साईड व ईमेल
पर सम्पर्क कर सकते है https://battely2.blogspot.com
http://beautyclinict.blogspot.in/
battely2@gmail.com
मोटापा कम करने का एक्युपंचर पाईंट
मोटापा कम करने का एक्युपंचर पाईंट
मोटापे का कारण शरीर
के कुछ हिस्सों में विशेष कर ऐसे हिस्सो में अधिक होता है जहॉ पर शरीर से कम काम
लिया जाता है । जैसे पेट ,जांध कुल्हे आदि परन्तु कुछ व्यक्तियो में मोटापा सम्पूर्ण
शरीर में होता है । एक्युपंचर में मोटापे को कम करने ऐवम चबी को घटाने के लिये
निम्न पाईट पर एक्युपंचर पाईन्ट पर पंचरिग कर उचित परिणाम प्राप्त किया जा
सकता है । वैसे यह नेवल एक्युपंचर चिकित्सा में प्रयोग किये जाने वाला पाईट है ।
इस चित्र को ध्यान से देखिये
इसमें क्रमाक 1 से 6 तक के पाईट है यही है मोटापा व शरीर से अनावश्यक चर्बी को कम
करने के पाईन्ट क्रमाक 1,2,5,6 यह रिन चैनल पर पाये जाने वाले पाईट है ।
पाईन्ट नम्बर
-1 यह नाभी या रिन-8 से डेढ चुन नीचे रिन चैनल पर पाई जाती है यहां
पर रिन -6 पाईन्ट होता है
पाईन्ट नम्बर
-2 यह रिन-5 बिन्दू है इसकी दूरी नाभी से दो चुन नीचे रिन चैनल पर
होती है ।
पाईन्ट नम्बर
-3 इसकी दुरी पाईन्ट नम्बर 2 से दो चुन आडी रेखा में दोनो तरफ होती
है जहॉ पर स्टोमक-27 पाईन्ट पाया जाता है ।
पाईन्ट नम्बर-4 इसी
स्थिति रिन-8 बिन्दू या नाभी मध्य से दो चुन की दूरी में आडी रेखा में दोनो तरफ
होती है । जहॉ पर स्टो-25 पाईन्ट होता है ।
पाईन्ट नम्बर-5 यह बिन्दू नाभी या रिन-8 पाईन्ट
से एक चुन रिन चैनल पर ऊपर की तरफ होती है जहॉ पर रिन-9 पाईन्ट होता है ।
पाईन्ट नम्बर-6 यह बिन्दू नाभी या रिन-8 पाईन्ट
से चार चुन ऊपर रिन चैनल पर पाई जाती है जहॉ पर रिन- 12 पाईन्ट होता है ।
उक्त छै: पाईन्टस पर
पंचरिग कर मोटापे को कम किया जाता है । होम्योपंचर उपचार में लक्षणों को ध्यान
में रख कर उक्त पाईट पर होम्योपैथिक की शक्तिकृत औषधियों का उपयोग किया जाता है
। एक्युप्रेशर चिकित्सा एंव ची नी शॉग उपचार में उक्त पाईट पर दबाब व मिसाज
तकनीकी से उपचार कर मोटापे को कम किया जाता है ।
G:\BC-Year-2016-17\Acupanthure\Acupanthure\मोटापा कम करने का एक्युपंचर पाईंट.doc
आईडोलोजी (ऑखों के परिक्षण से बीमारीयों की पहचान)
आईडोलोजी (ऑखों के परिक्षण से बीमारीयों की पहचान)
बीमारीयों की स्थिति में शारीरिक परिवर्तन सामान्य सी बात है परन्तु
लम्बे समय से शरीर परिक्षणकर्ताओं द्वारा सूक्ष्म शारीरिक अंगो के परिक्षणों का
परिणाम यह बतलाते है कि बीमारी व स्वस्थ्यता की दशा में सामान्य सा शारीरिक
परिवर्तन तो प्रथम दृष्य परिणाम है , यदि सूक्ष्मता से शरीर के अन्य अंगों के
परिक्षण किये जाये तो इनमें रोगानुकूल परिवर्तन देखे जा सकते है । उपतारामण्ड
परिक्षण द्वारा रोगों की पहचान, जिसे सामान्यत: ऑखों को देख कर बीमारीयों की
पहचान कहॉ जाता है । इसकी खोज डॉ0 पीजले ने की थी । इसी प्रकार डॉ0 मैकोले सहाब का
कहना था कि यदि किसी व्यक्ति के शरीर को बचपन में काट दिया जाये तो उसका विकास
क्रम शरीर के पोषण तत्व एंव वाहय जगत के क्रिया कलापों के साथ होता है उन्होने
कहॉ मनुष्य जब मॉ के गर्भ से बाहर दुनिया में आता है तब उसका सम्पर्क नाभी को
काट कर अलग कर दिया जाता है । अब उस बच्चे का सम्पर्क मॉ से अलग हो जाता है तथा
उस कटे हुऐ भाग का निमार्ण कार्य उसके शरीर तथा बृहमाण के सम्पर्क से होना
प्रारम्भ हो जाता है जिसमें प्रथम उसके अपने शरीर के पोषण, उर्जा से उस कटे हुऐ
भाग की मरम्मत का कार्य प्रारम्भ होता है इसके साथ वाहय जगत के सम्पर्क के कारण
उसके मरम्मत कार्य में बृहमाण्ीय सम्पर्क का भी प्रभाव पडता है । इस मरम्मत
कार्य में उसके शरीर की संसूचना प्रणाली की भी अहम भूमिका होती है । जो जीन्स की
यथासंभव जानकारी जिसमें वंशानुगत बीमारीयॉ, व्यवहार, शारीरिक संरचना आदि की
जानकारी ,का प्रतिनिधित्व कर उसे इस भाग में संगृहित करता है । उसके इस कटे हुऐ
भाग की मरम्मत कार्य में क्ष्ध्परिक्षणों बीमारीयों का सम्बन्ध ज्योतिष से रहा
है ,ज्योतिष से रोगों की पहचान एंव निदान का उल्लेख प्राचीन आर्युवेद ,प्राचीन
यूनानी चिकित्सा ,तिब्बती ,चाईनज एंव योगा एंव अध्यात्म में मिलता है ।
पश्चिमोन्मुखी चिकित्सा एंव शिक्षा ने इस जन कल्याणकारी वि़द्या के पतन में
अपनी एक अहम भूमिका का निर्वाह किया है । सदियों से चली आई कई जनकल्याणकारी
जानकारीयॉ आज लुप्त होने की कगार पर है ऐसी जन उपयोगी ज्ञान का संरक्षण व संवर्धन
तो दूर की बात है । इसकी उपेक्षा कर इसे अवैज्ञानिक एंव तर्कहीन कहने में हमारे
पश्चिमोमुखी शिक्षा व सभ्यता का बडा हाथ रहा है ।
आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है , ज्ञान से
विज्ञान बना है न कि विज्ञान से ज्ञान फिर हमारे वैज्ञानिक व पश्चिमोमुन्खी सभ्य
पढे लिखे समाज ने इस प्रकार की जन उपयोगी ज्ञान को बिना किसी प्रमाण के तर्कहीन
एंव अवैज्ञानिक तो कह दिया परन्तु इसकी उपयोगिता एंव आशानुरूप परिणामों को देखा
तो फिर इस पर अनुसंधान व वैज्ञानिक परिक्षण हुऐ तब जाकर इस पश्चिमोन्मुखी समाज ने
इसे स्वीकार किया इसके कुछ प्रत्यक्ष
उदाहरण है योगा , प्राक़तिक जीवन प्राक़तिक सानिध्य ,बीमारीयो का प्रमुख कारण है
आज हम सभी प्राक़तिक के सानिध्य से कोसों दूर होते चले गये है चूॅकि कहॉ गया है
कि प्राणी की उत्पत्ती प्राक़तिक से होती वह एक बहमणीय जीव है ।प्राकतिक के
सानिध्य में ही उसका जीवन निरोगी दीर्धायु होता है ।
आज जब हम सभी किसी न किसी रूप से पश्चिमी सभ्यता
व शिक्षा तथा चिकित्सा के दास बन कर रह गये है , सधन गगन चुम्बकीय मकानों में
हमारा जीवन यापन होता है । हवा पानी एंव खादय सामग्रीयॉ पूर्णत: प्रदूषित हो चुकी
है । इस बात को कहने मे किसी प्रकार की अतिश्योक्ति न होगी कि आज हमारे जीवन के
प्रमुख आधार पंच तत्व है , जिससे प्राणी की उत्पति होती है एंव मत्यु पश्चात
वही इन्ही तत्वों में विलीन हो जाता है , ये सभी प्रदूषित हो चुकी है । उर्वक
विशैले खाद जिसका प्रयोग कृषि कार्यो में बढ चढ कर हो रहा है एंव इसके घातक परिणाम
भी सामने आने लगे है । जल शोधन में प्रयोग किये जाने वाले रसायनों ने भी जीवन व स्वास्थ्य
पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है । वायु प्रदूषण के विषय में कुछ लिखना सीधे अर्थो
में सूरज को रोशनी दिखलाना है ।
आज से वर्षो पूर्व जब विज्ञान अपने शैशवास्था
में था , उसके पहले से ही जनोपयोगी कल्याणकारी कुछ कहावते प्रचलन में थी एंव उन
कहावतों के आशानुरूप परिणामों ने उन्हे जन उपयोगी बना दिया था , उनमें भडरी जी की
कहावते व दोहे किसी विज्ञान से कम नही है । उनमें एक कहावत है जब चीटी अण्डा ले
कर चलती है एंव हाथी अपने सिर पर धूल डालता है । इससे पानी गिरने का अनूमान हो
जाता है । प्राकृतिक से उत्पन्न प्राणीयों को जीवित रहने के लिये ईश्वर ने
असीम शक्तियॉ प्रदान की है । परन्तु
मनुष्य एक सुरक्षित समाज में रहता है ,परन्तु अन्य प्राणीयों को अपने जीवन व स्वास्थ्य
की सुरक्षा हेतु स्वय सजग रहना होता है । इसलिये वह प्राकतिक अपरदाओं से बचने व
स्वास्य की सुरक्षा हेतु स्वय सजग रहता है । भूचाल हो या शैलाब , प्राकृतिक
अपदा का मुक प्राणीयों को पूर्वभास हो जाता है , पक्षी अपना बसेरा छोड देती है
,घोडा हिन हिनाने लगता है ,गाय रम्भाने लगती है । ये बाते सदियों से कहावतों के
रूप में प्रचलन में रही है और इसका लाभ भी सदियों से मानव समुदाय उठाते आया है ।
इन कहावतों को पहले तर्कहीन अवैज्ञानिक कहने वाले समाज ने जब इसका वैज्ञानिक
परिक्षण किया तो पाया कि उक्त परस्थितियों के निर्मित होने पर प्राणीयों के शरीर
में रसायनिक परिवर्तन होते है , इसका परिणाम है कि उन्हे इस प्रकार की अप्रिय धटनाओं
की जानकारीयॉ हो जाती है । अत: पश्चिमी ज्ञान विज्ञान ने इसे स्वीकारा इसके
आशानुरूप परिणामों की वजह से आज इसका उपयोग भावी संकट काल या भावी दुर्धटनाओं को
टालने में किया जाने लगा है । मिर्गी, हाईब्लड प्रेशर, मधुमेह, जैसी बीमारीयों
में जब कभी विषम परस्थितियॉ उत्पन्न होने की संभावना रहती है , ऐसी परस्थितियों
का पूर्वानुमान उनके पालतु जानवरों को हो जाता है एंव समय रहते वे अपने मालिक को
अगाह कर उनका जीवन बचाने में सहायता करते है । इसीलिये मिर्गी के दौरे पडने या हाई
ब्लड प्रेशर ,मधुमेह की स्थिति में बेसुध होने के पूर्व ये पालतू जानवर उन्हे
सचेत कर देते है । वैज्ञानिकों ने इनकी सेवायें लेने की सलाह दी है और इसके परिणाम
आशानुरूप ही मिले है ।
आज से वर्षों पूर्व जब उपचार पद्धतियॉ अपने
उदभव काल में थी , उस समय विश्व के हर कोने में रोग परस्थितियों के ज्ञान के आधार
पर प्राकृतिक संसाधनों से प्राक़तिक सुलभ उपचार किये जाते रहे है , निरंतर उपचारों
के आशानुरूप परिणामों की वजह से कुछ उपचार विधियॉ प्रभावों में आई , भले ही इस
प्रकार के उपचारों का कोई वैज्ञानिक आधार उस समय न रहा हो , परन्तु अपनी उपयोगिता
की वजह से एंव सफल परिणामों की वजह से उसने अपने ज्ञान से एक मुंकाम हांसिल अवश्य
कर लिया था । अब ज्ञान के बाद ही तो विज्ञान का कार्य शुरू होता है , मात्र
वैज्ञानिक परिणामों के अभाव में जीवन को खतरे में तो नही डाला जा सकता , मरता क्या
न करता , यदि उसकी जान बचती है तो वह कुछ भी करने को तैयार है , और होता भी यही
रहा है ।
ज्ञान के बाद विज्ञान का आवष्कार हुआ विज्ञान
के अविष्कार के पहले भी सफल उपचार होते रहे है । अत: हमें यह नही भूलना चाहिये कि
विश्व प्रचलित विभिन्न प्रकार की उपचार विधियॉ वैज्ञानिक प्रमाणों के अभाव में
अनुपयोगी है , यदि उनके परिणाम आशानुरूप है ,तो उसे अपनाने में हर्ज ही क्या
है , हम यह नही कहते कि उस जमाने की कई
उपचार विधि अवैज्ञानिक , तर्कहीन व परिष्कृत थी ,परन्तु सभी नही । वैज्ञानिक
समुदाय अपने पश्चिमोमुन्खी विचार धारा से हट कर जन कल्याणकारी भावना से इस पर
अनुसंधान करे तभी सब का भला हो सकता है ,बिना परिणामों के किसी भी उपचार विधि या
चिकित्सा पद्धति को गलत कहना मानव कल्याण के हित में नही है । परन्तु व्यवसायिक
प्रतिस्पृद्धा ने आज हमे अलग अलग समूह, वर्गो में विभाजित कर सोचने पर मजबूर कर
दिया है ।
प्राचीन शास्त्र
किसी भी राष्ट्र या समुदाय विशेष के प्राचीन
ग्रन्थ उस राष्ट्र की अमूल्य धरोहर है सदियों की खोज निरंतर प्रयासों के परिणाम
स्वरूप प्राप्त ज्ञान का संकलन जब किसी गृन्थ या शास्त्र का मूर्त रूप लेकर जन
कल्याण की उपयोगिता को सिद्ध करने में सामर्थ होती है, तभी उसे प्रमाणिकता मिलती
है और वह प्रमाणित ग्रन्थ कहलाती है ।
पश्चिमोन्मुखी ज्ञान ,विज्ञान व सभ्यता के
अंधानुकरण की महामारी के प्रकोप ने कई प्राचीन गृन्थों व मान्यताओं की
प्रमाणिकता पर समय समय पर प्रश्न चिन्ह खडे कर ,उन्हे अवैज्ञानिक तर्कहीन कहॉ ।
पश्चिमोन्मुखी ज्ञान विज्ञान के विकास की हम आलोचना नही करते, इसके विकास ने जन
कल्याण में अपनी अहम भूमिका का निर्वाह किया है । परन्तु यह आज भी सम्पूर्ण नही
है तो फिर प्राचीन शास्त्रों के ज्ञान मान्यताओं को बिना किसी प्रमाण के
अवैज्ञानिक एंव तर्कहीन कहने का इन्हे अधिकार नही है । यह अधिकार व विषमता
प्रतिस्पृद्ध , वर्ग स्पृद्ध ,व्यवसायीक प्रति स्पृर्द्ध की बीमार मानसिकता का
परिणाम है । एक चिकित्सा पद्धति का चिकित्सक किसी दूसरी चिकित्सा पद्धति के
सिद्धान्त व उसकी उपयोगिता को हमेशा सन्देह की दृष्टि से देखते आया है , ठीक इसी
प्रकार पश्चिमी ज्ञान विज्ञान व सभ्यता का अंधानुकरण करने वाले व्यक्तियों के
गले से प्राचीन अमूल्य गृन्थों की मान्यतायें व उपयोगिताये उसके गले से नही
उतरती इसके उपयोगी प्रमाणों की वास्तविकता को परखना तो दूर की बात है इसे मानने
के दु:साहस के परिणामों से कही वह भी अशिक्षित असभ्य वर्ग की कतार में खडा न हो
जाये इस डर से वह इन सचाईयों से कोसों दूर रहना ही उचित समक्षता रहा एंव इससे दूर
होता चला गया ।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)