न्यूरोथैरापी उपचार
वैदिक काल में अपने उर्त्कष पर था, इसमें नाभी को केन्द्र मानकर समस्त प्रकार
की भौतिक एंव मानसिक बीमारीयों का उपचार किया जाता था । महर्षि सुश्रुत द्वारा प्रतिपादित सुश्रुत
संहिता शल्य तंत्र का प्राचीनतम गृन्थ है
जिसे ईसा से 300 से 3000 वर्ष पूर्व का माना जाता है इस ग्रन्थ में न्यूरोथेरापी
का वर्णन है । सुश्रुत के अनुसार मनुष्य के शरीर में 700 प्रकार की सिराओं तथा
400 प्रकार के स्नायु होती है ,जिसका का केन्द्र नाभी है । इसी प्रकार उन्होने
कहॉ वातवह,पितवह,कफवह,और रक्तवह सभी सिराओं का उदगम स्थल नाभी ही है ,जो कि महत्वपूर्ण
मर्म स्थल है नाभी से ही यह सिराये ऊधर्व ,अध: एंव तिर्यक दिशाओं की ओर फैलती है ,
नाभी में प्राण का विशेष स्थान है ।
नाभी पर
72000 नाडियों का केन्द्र है ! समस्त संसूचना तंत्र एंव नर्वस सिस्टम
इस क्षेत्र से होकर गुजरती है !
मनुष्य की उत्पत्ती
जब वह मॉ के गर्भ में रहता है नाभी से ही होती है । शरीर की समस्त क्रियाओं का
संचालन इसी अवस्था में नाभी से होता है । जब मनुष्य मॉ के गर्भ से बाहर आता है
उस समय नाभी नाल को काट कर अलग कर दिया जाता है । नाभी नाल कटते ही इसका सम्पर्क
स्वत: शरीर के नर्व, संसूचना तंत्र ,सुरक्षा तंत्र , अर्थात समस्त जैविक कार्य
प्रणाली से हो जाता है । कुछ विद्ववानों का मत है कि गर्भनाल को काट कर अलग करने
पर उस गर्भा नाल अर्थात नाभी का विकास उसके शरीर से एंव बृहमाण अर्थात वहय वातावरण
दोनों के मिश्रित सहयोग से होता है इसका परिणाम यह होता है कि नाभी की बनावट एंव
उसकी धारीयों में यह परिवर्तन स्पष्ट परिलक्ष्ति होता है । डॉ0मौकोले इसके
पक्षधर थे उन्होने भी इस बात को मानते हुऐ कहॉ था कि नाभी नाल के काट जाने के बाद
उसका विकास मनुष्य के शरीर एंव बाहय बातावरण से होता है , नाभी सेल्स में उस व्यक्ति
की अनुवांशिक संसूचना संगृहित होती है इसमें उसकी अनुवाशिक बीमारीयॉ तथा अनुवाशिक
तमाम जानकारी होती है । वैदिक उपचारकर्ताओं द्वारा नाभी के आकार प्रकार तथा
धारीयों की बनावट आदि के अनुसार रोगों की पहचान की जाती थी , रोग परिक्षण के
उपरान्त उन्हे इस परिवर्तन से यह अनुमान हो जाता था कि बीमारी किस स्थान में है
साध्य है अथवा असाध्य , उपचार के पश्चात नाभी के आकार प्रकार ,नाभी धारीयों की
बनावट में परिवर्तन होने लगता था इसे देख कर उपचारकर्ता बीमारी के ठीक होने की
स्थिति ,या रोग के असाध्यता की स्थिति को स्पष्ट बतला दिया करता था जो आज के
अत्याधुनिक उपचारकर्ता बतलाने में असमर्थ है । अत: यह कहना अतिश्योक्तिपूर्ण न
होगा कि उस समय का यह उपचार प्रक्रिया कितनी
विकसित थी । न्यूरोथेरापी वैदिक काल की नाभी चिकित्सा ही है ।
न्यूरोथैरापी
का प्रथम सिद्धान्त :- न्यूरोथैरापी जैसा कि
इसके नाम से ही पता चलता है कि यह न्यूरो और थैरापी दो शब्दों से मिल कर बना है
। न्यूरो का अर्थ है नर्व तथा थैरापी का अर्थ होता है उपचार अर्थात इसका अर्थ हुआ
नर्व सिस्टम को आधार मानकर उपचार करना ।
1- प्रथम
सिद्धान्त के अनुसार सिराओं तथा स्नायुओं का उपचार :- जैसा
कि पहले ही कहॉ जा चुका है समस्त प्रकार की सिराओं तथा स्नायुओं (वातवह, पित्तवह,
कफवह ,एंव रक्तवह सभी सिराओं का उदगम स्थल नाभी है)
जिसका
केन्द्र नाभी है इसे आधार मान कर उपचार किया है । इस सिद्धान्त के अनुसार
यह माना जाता था कि नाभी पर 72000 नाडीयों का संगम स्थिल होता है । बीमारी की
स्थिति में इन्ही नाडीयों की स्थिति को पहचान कर उसके माध्यम से उपचार किया जाता
है ।
2-संवेदना
उपचार (रस रसायन संतुलन ):- शरीर के नर्व , संसूचना तंत्र , आदि को संवेदित या उत्तेजित
कर रस , रसायनों में परिवर्तन ला कर उसे सन्तुलित किया जाता है इसमें हार्मोस ,
स्त्राव ,तथा रस एंव रसायन जिसे सामान्य भाषा में हम सभी तरल द्रव्य के रूप में
जानते है आदि सम्मलित है ।
3:- एसिड
एंव एल्कलाईन सन्तुलन :-इस चिकित्सा उपचार
में ऐसा माना जाता है कि मनुष्य शरीर एसिड एंव एल्कलाईन का संन्तुलन है । इस
उपचार विधि के अनुसार हमारा आधा शरीर ऐसिड गर्म है एंव आधा एल्कलाईन अर्थात ठन्डा
है । इसे चिकित्सा विज्ञान में अम्ल और क्षार का सन्तुलन भी कहॉ जाता है जिसका
हमारे शरीर का पी एच 7 मान होता है ।
4-नाभी
मर्म उपचार -: नाभी को
मर्म स्थल माना गया है , प्राचीन चिकित्सा उपचार विधियों में नाभी मर्म चिकित्सा
से कई प्रकार की बीमारीयों का उपचार किया जाता रहा है । इसका उल्लेख प्राचीन
आयुर्वेद चिकित्सा में नाभी मर्म, नाभी वस्ती ,आदि के नामों देखने को मिलता है ।
प्राकृतिक चिकित्सा ,आयुवेद ,तथा विश्व की अन्य वैकल्पिक उपचार विधियों में
नाभी को केन्द्र मानकर उपचार किया जाता रहा है जिसमें कई प्रकार की औषधिय युक्त
तेलों को नाभी में डाल कर चिकित्सा की जाती थी । इस उपचार विधि में भी उक्त
सिद्धान्तों के अनुसार ही चिकित्सा की जाती है । वैसे तो इस उपचार विधि में नाभी
मर्म को कई प्रकार से उत्तेजित या संवेदित किया जाता है ,इससे नाभी पर पाई जाने
वाली सूचनातंत्र ,एंव नाभी से सम्बन्धित नर्वस सिस्टम ,आदि सजग हो जाते है ।
सूचना
1-छात्रों को उनके
विषय की जानकारीयॉ उनके मेल एडस पर समय समय पर भेजी जाती है परन्तु छात्रों के
द्वारा भेजे जाने वाले कितनी फईले प्राप्त हो चुकी इसकी जानकारी न देने पर बार
बार वही सामग्रीयॉ भेज दी जाती है अत: समस्त छात्रों को सूचित किया जाता है कि वे
अभी तक भेजे गयी फाईलो की जानकारी तत्काल भेजे ।
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