नाभी परिक्षण से
रोग की पहचान एंव निदान
हमारे शरीर में व्यर्थ सी दिखने वाली नाभी के महत्व पर आधुनिक चिकित्सा
विज्ञान भले ही मौन हो
,परन्तु इसके महत्व को पश्चात्य चिकित्सा पद्धति को छोडकर ,विश्व की अनेक उपचार विधियों जैसे अध्यात्म ,योगा, प्राकृतिक चिकित्सा ,ची नी शॉग,नाभी स्पंदन से रोगों की पहचान एंव निदान आदि में इसके महत्व पर प्रकाश डाला गया है । चूंकि पश्चात चिकित्सा व संस्कृत्ति के अंधानुकरण की वहज से इसका महत्व धीरे धीर कम होता चला गया , चॅद जानकार व्यक्तियों ने इसे अपने तक ही सीमित रख, इसके आशानुरूप परिणामों से धन व यश प्राप्त करते रहे । शारीरिक रोग हो या सौन्र्द्धय समस्याओं का निदान, बिना किसी दबा दारू के आसानी से किया जा सकता है । चूंकि नाभी 72000 नाडीयों का संगम स्थल है । हमारे शरीर की संसूचना प्रणाली एंव नर्व सिस्टम का सम्बन्ध नाभी से है । चीन की परम्परागत उपचार विधि ची नी शॉग का मानना है कि समस्त प्रकार की बीमारीयॉ पेट से ही उत्पन्न होती है ,पेट ठीक रहेगा तो स्वास्थ्य ठीक रहेगा । यदि पेट याने आप का पाचन तंत्र खराब होगा , तो आप उपर से देखने में भले ही स्वस्थ्य होगें परन्तु इससे आप के शरीर का रस एंव रसायन का संतुलन बिगडने लगता है । इससे कुछ लोगों को भूख नही लगती ,पेट में गैस का बनना ,खटटी डकारे ,पेट का साफ न होना जैसे प्रथम लक्षण उत्पन्न होने लगते है और यह तो आज की जीवन शैली की वजह से 80 प्रतिशत लोगो में देखी जा सकती है । इस रस एंव रसायन के असंतुलन के भविष्यात परिणाम बडे ही गम्मीर होते है जैसे हिदय ,किडनी ,मधुमेह मृगी ,हिस्टीरिया,मानसिक रोग ,तनाव दमा ,टी बी कैंसर आदि
,परन्तु इसके महत्व को पश्चात्य चिकित्सा पद्धति को छोडकर ,विश्व की अनेक उपचार विधियों जैसे अध्यात्म ,योगा, प्राकृतिक चिकित्सा ,ची नी शॉग,नाभी स्पंदन से रोगों की पहचान एंव निदान आदि में इसके महत्व पर प्रकाश डाला गया है । चूंकि पश्चात चिकित्सा व संस्कृत्ति के अंधानुकरण की वहज से इसका महत्व धीरे धीर कम होता चला गया , चॅद जानकार व्यक्तियों ने इसे अपने तक ही सीमित रख, इसके आशानुरूप परिणामों से धन व यश प्राप्त करते रहे । शारीरिक रोग हो या सौन्र्द्धय समस्याओं का निदान, बिना किसी दबा दारू के आसानी से किया जा सकता है । चूंकि नाभी 72000 नाडीयों का संगम स्थल है । हमारे शरीर की संसूचना प्रणाली एंव नर्व सिस्टम का सम्बन्ध नाभी से है । चीन की परम्परागत उपचार विधि ची नी शॉग का मानना है कि समस्त प्रकार की बीमारीयॉ पेट से ही उत्पन्न होती है ,पेट ठीक रहेगा तो स्वास्थ्य ठीक रहेगा । यदि पेट याने आप का पाचन तंत्र खराब होगा , तो आप उपर से देखने में भले ही स्वस्थ्य होगें परन्तु इससे आप के शरीर का रस एंव रसायन का संतुलन बिगडने लगता है । इससे कुछ लोगों को भूख नही लगती ,पेट में गैस का बनना ,खटटी डकारे ,पेट का साफ न होना जैसे प्रथम लक्षण उत्पन्न होने लगते है और यह तो आज की जीवन शैली की वजह से 80 प्रतिशत लोगो में देखी जा सकती है । इस रस एंव रसायन के असंतुलन के भविष्यात परिणाम बडे ही गम्मीर होते है जैसे हिदय ,किडनी ,मधुमेह मृगी ,हिस्टीरिया,मानसिक रोग ,तनाव दमा ,टी बी कैंसर आदि
भारतीय प्राचीन आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में
भी कहॉ गया है कि बीमारीयों का मूल कारण पेट है ।
हमारे शरीर का पोषण, गृहण किये
भोज्य पदार्थो के पाचन क्रिया पश्चात उत्पन्न रसो के रसायनिक परिवर्तनों की
समानता से होता है । जब तक रस एंव रसायनिक सन्तुलन बना रहेगा प्राणी स्वस्थ्य
व दीर्धायु होगा ,रस एंव रसायनिक परिवर्तन में नाम मात्र की असमानता से स्वास्थ्य
एंव शरीर प्रभावित होने लगता है ,इस क्षणिक रस रसायनों की असमानता जब तक किसी रोग
में परिवर्तन नही हो जाती हमे समक्ष में नही आती जैसे रात्री में नीद न आना,तनाव
,भूख न लगना, आलस ,गैस बनना ,जल्दी थकान ,त्वचा की स्वाभाविकता कम होना ,बालों
का झडना समय से पहले त्वचा पर झुरूरीयॉ ,एक निश्चित उम्र के बाद भी शारीरिक विकाश
का न होना, स्त्रीयों में स्त्री सुलभ अंगों का विकसित न होना ,मोटापा ,बॉझपन,
मस्से, मुंहासे इसी प्रकार के और भी कई उदाहरण है । जिन्हे हम प्राय: गंम्भीरता
से नही लेते परन्तु रस रसायनों के इस क्षणिक परिवर्तन के ये प्रारम्भिक लक्षण है
जिन्हे नजर अंदाज नही करना चाहिये ।
विभिन्न प्रकार की बीमारीयॉ हो या
सौन्र्द्धर्य समस्याओं का निदान ची नी शॉग एंव नाभी स्पंदन से रोग पहचान एंव
निदान , परम्परागत उपचार विधि , एंव न्यूरौथैरापी में प्राय: प्राय: एक ही सा है
इस उपचार विधि विशेषकर ची नी शॉग उपचार में यह माना गया है कि पेट में रस रसायनिक
परिवर्तन के साथ सम्पूर्ण शरीर के क्रियाकलापों के आवश्यक अंग यहॉ पर विद्यमान
होते है । अत: स्वास्थ्य परिवर्तन रोगावस्था या रस एंव रसायन की असमानता
सौर्द्धय समस्या, स्वस्थ्य दीर्धायु हेतु पेट को टारगेट किया जाता है । जिस
प्रकार आयुर्वेद चिकित्सा में रोगी की नाडी का परिक्षण किया जाता है ठीक इसी
प्रकार से इस उपचार विधि में सर्वप्रथम नाभी का परिक्षण किया जाता है यह परिक्षण
दो प्रकार से किया जाता है ।
1-भौतिक परिक्षण :-
इसमें रोगी की नाभी बनावट उस पर पाई जाने वाली धारीयों की बनावट एंव उसकी स्थिति का परिक्षण किया जाता है ।
इसमें रोगी की नाभी बनावट उस पर पाई जाने वाली धारीयों की बनावट एंव उसकी स्थिति का परिक्षण किया जाता है ।
2-नाभी स्पंदन का परिक्षण:-
इस परिक्षण में नाभी पर तीन अंगुलियों को रख कर नाभी के स्पंदन को ज्ञात
किया जाता है । यदि यह स्पंदन नाभी के बीचों बीच है तो व्यक्ति स्वस्थ्य एंव
दीर्धायु होता है । यदि यह सूई की नोक के बराबर भी खिसकती है तो व्यक्ति के रस
,रसायन में असमानता उत्पन्न होने लगती है एंव व्यक्ति के स्वास्थ्य एंव उसके
विकास दैनिक कार्यो में परिवर्तन प्रारम्भ होने लगता है जो आगे चलकर रोग में
परिवर्तित हो जाता है । इस उपचार विधि में नाभी का स्पंदन जिस दिशा में होता है
उसी दिशा की ओर नाभी धारीयॉ दिखलाई देती है इससे उस दिशा पर पेट में पाये जाने
वाले अंतरिक अंगों में खराबीयॉ होती है । जिसकी पहचान उसी दिशा मे पेट से लेकर
अंतिम छोर तक दबाब देते हुऐ परिक्षण करने पर उस जगह पर र्दद या असमान्य सी स्थिति
देखी जाती है । तत्पश्चात उसे टारगेट कर सक्रिय किया जाता है ऐसा करने से वहॉ के
अंगों में सक्रियता उत्पन्न हो जाती है अंन्य सुसप्तावस्था वाले अंग जैसे संसूचना
तंत्र ,नर्वसतंत्र तथा वहॉ पर पाये जाने वाले अंग सक्रिय हो कर अपना अभीष्ट कार्य
करने लगते है । टारगेट किये गये भाग को सक्रिय करने से रस रसायन भी सक्रिय हो कर
समान अवस्था में आ जाते है । टारगेट अंगों को सक्रिय करने हेतु परम्परागत विधि
में उस स्थान पर आयल लगा कर मिसाज किया जाता है । आधुनिक विधि में कपिंग तथा
वायवेटर यंत्र के माध्यम से उस अंग को सक्रिय किया जाता है इसके बहुत ही अच्छे
परिणाम मिले है । इस उपचार विधि की जानकारीयॉ नेट पर उपलब्ध है ची नी शॉग टाईप कर
इसकी फाईले एंव वीडियों आदि देख सकते है । इन साईड पर इसका नि:शुल्क पत्राचार
प्रशिक्षण उपलब्ध है । battely2.blogspot.com
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