चींटी
से कैंसर जैसी बीमारी का उपचार
कैंसर जैसी घतक असाघ्य बीमारी के उपचार में
दक्षिण अफ्रिका के आदिवासी समुदायों का एक कबीला दक्ष था । इसकी जानकारी वहॉ के जन
समुदायों को जब हुई जब किसी पत्रकार की पत्नी जो कैंसर से लड रही थी एंव चिकित्सकों
ने उसके उपचार को असाध्य कह कर घर पर सेवा करने की सलाह दी थी ।
पत्राकार महोदय दक्षिण अफ्रिका के आदिवासी समुदायों पर लेख तैयार कर रहे थे तब उन्होने देखा कि कई व्यक्ति उस आदिवासी समुदाय के पास कैंसर उपचार के लिये आ रहे थे उनमें कई ऐसे समुदाय के व्यक्ति भी थे जो पढे लिखे समाज से तालुक रखते थे । उनके मरीजों को कैंसर विशेषज्ञों ने यह कह कर लौटा दिया था कि उनका उपचार असाध्य है । जब पत्रकार महोदय ने उनसे पूछा तो उन्होने बतलाया कि इन कबीले वालों के उपचार से उन्हे काफी आराम है र्दद तो जैसे मानों चला ही गया हो एंव जो धॉव भरते नही थे धीरे धीरे भरने लगे है । पत्रकार महोदय को आर्श्चय हुआ उन्होने इसके उपचार की विधि जानना एंव देखना चाहि । उन्होने देखा की एक मरीज के पेट पर नाभी के ऊपर छोटी छोटी कई चींटीयॉ जो उन्होने पहले से रखी थी किसी बर्तन में रख कर छोड दी चींटीयों के काटने से मरीज र्दद से चिल्ला रहा था । परन्तु जब मरीज से पूछॉ तो उसने बतलाया कि चीटीयों के काटने से उतना र्दद नही है परन्तु कैसर का र्दद इतना है कि सहा नही जाता । कुछ करीब पन्द्रह मिनट पश्चात उसके पेट पर से चींटीयों का हटाया गया इससे उस जगह पर लाल लाल निशान एंव सूजन आ गई थी । परन्तु इस उपचार के बाद मरीज ने बतलाया कि कैंसर में जो र्दद था कम हो गया था । पत्रकार महोदय ने उपचार हेतु आये अन्य मरीजो से पूछॅ उन्होने बतलाया कि उनका र्दद कम है एंव धॉव भरने लगे है । पत्रकार ने अपनी पत्नी के उपचार इनसे कराने का निर्णय लिया कुछ दिनों के उपचार से उनकी पत्नी पूर्णत: स्वस्थ्य हो चुकी । पत्रकार महोदय ने यह जानकारी अपनी समाचार पत्र में प्रकाशित की इससे इसका प्रचार प्रसार तेजी से हुआ परन्तु मुख्य धारा के चिकित्सको के विरोध के कारण इसका उचित प्रचार न हो सका बल्की चिकित्सकों ने इस उपयोगी उपचार को अवैज्ञानिक एंव तर्कहीन कह कर इसकी उपेक्षा ही नही बल्की कानून इसे बन्द करा दिया था इन्ही कारणों से यह जन उपयोगी प्राकृतिक उपचार लुप्त होती चली गयी परन्तु वैज्ञानिक परिक्षणों से अब ज्ञात हुआ है कि चींटीयों के विष में फार्मिक अम्ल एंव सोडियम फॉस्फेट पाया जाता है जो कैंसर ग्रस्त कोशिकाओं को खत्म करने की क्षमता रखता है । इसके बाद इस पर वैज्ञानिक परिक्षण प्रारम्भ हुऐ
पत्राकार महोदय दक्षिण अफ्रिका के आदिवासी समुदायों पर लेख तैयार कर रहे थे तब उन्होने देखा कि कई व्यक्ति उस आदिवासी समुदाय के पास कैंसर उपचार के लिये आ रहे थे उनमें कई ऐसे समुदाय के व्यक्ति भी थे जो पढे लिखे समाज से तालुक रखते थे । उनके मरीजों को कैंसर विशेषज्ञों ने यह कह कर लौटा दिया था कि उनका उपचार असाध्य है । जब पत्रकार महोदय ने उनसे पूछा तो उन्होने बतलाया कि इन कबीले वालों के उपचार से उन्हे काफी आराम है र्दद तो जैसे मानों चला ही गया हो एंव जो धॉव भरते नही थे धीरे धीरे भरने लगे है । पत्रकार महोदय को आर्श्चय हुआ उन्होने इसके उपचार की विधि जानना एंव देखना चाहि । उन्होने देखा की एक मरीज के पेट पर नाभी के ऊपर छोटी छोटी कई चींटीयॉ जो उन्होने पहले से रखी थी किसी बर्तन में रख कर छोड दी चींटीयों के काटने से मरीज र्दद से चिल्ला रहा था । परन्तु जब मरीज से पूछॉ तो उसने बतलाया कि चीटीयों के काटने से उतना र्दद नही है परन्तु कैसर का र्दद इतना है कि सहा नही जाता । कुछ करीब पन्द्रह मिनट पश्चात उसके पेट पर से चींटीयों का हटाया गया इससे उस जगह पर लाल लाल निशान एंव सूजन आ गई थी । परन्तु इस उपचार के बाद मरीज ने बतलाया कि कैंसर में जो र्दद था कम हो गया था । पत्रकार महोदय ने उपचार हेतु आये अन्य मरीजो से पूछॅ उन्होने बतलाया कि उनका र्दद कम है एंव धॉव भरने लगे है । पत्रकार ने अपनी पत्नी के उपचार इनसे कराने का निर्णय लिया कुछ दिनों के उपचार से उनकी पत्नी पूर्णत: स्वस्थ्य हो चुकी । पत्रकार महोदय ने यह जानकारी अपनी समाचार पत्र में प्रकाशित की इससे इसका प्रचार प्रसार तेजी से हुआ परन्तु मुख्य धारा के चिकित्सको के विरोध के कारण इसका उचित प्रचार न हो सका बल्की चिकित्सकों ने इस उपयोगी उपचार को अवैज्ञानिक एंव तर्कहीन कह कर इसकी उपेक्षा ही नही बल्की कानून इसे बन्द करा दिया था इन्ही कारणों से यह जन उपयोगी प्राकृतिक उपचार लुप्त होती चली गयी परन्तु वैज्ञानिक परिक्षणों से अब ज्ञात हुआ है कि चींटीयों के विष में फार्मिक अम्ल एंव सोडियम फॉस्फेट पाया जाता है जो कैंसर ग्रस्त कोशिकाओं को खत्म करने की क्षमता रखता है । इसके बाद इस पर वैज्ञानिक परिक्षण प्रारम्भ हुऐ
एक
ताजा स्टडी में चींटियों से कैंसर पर काबू :-
एक ताजा स्टडी में चींटियों से कैंसर पर काबू पाने संबंधित बेहद रोचक तथ्य
सामने आए हैं. इस स्टडी के मुताबिक, चींटियों में पाया
जाने वाला एक केमिकल कैंसर की दवा का असर 50 गुना तक बढ़ा देता
है. यह केमिकल 'बिच्छू घास' नाम के पौधे में भी
पाया जाता है. साइंस रिसर्च मैगजीन 'नेचर कम्युनिकेशंस' के ताजा अंक में छपी स्टडी में कहा गया है कि चींटियों
या बिच्छू घास में पाए जाने वाले इस केमिकल 'सोडियम फॉस्फेट' को कैंसर के एक विशेष उपचार में शामिल करने से दवा में
कैंसरग्रस्त कोशिकाओं को खत्म करने की क्षमता कई गुना बढ़ गई. रिसर्च के मुख्य
लेखक और ब्रिटेन की वॉर्विक यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर पीटर सैडलर के मुताबिक, 'कैंसरग्रस्त कोशिकाओं को जीवित रहने के लिए एक जटिल
प्रक्रिया अपनानी पड़ती है.
जब
इस प्रक्रिया को बाधित कर दिया जाता है तो कैंसरग्रस्त कोशिकाएं काम करना बंद कर
देती हैं और आखिर में खत्म हो जाती हैं.गर्भाशय में हुए कैंसर से ग्रस्त कोशिकाओं
पर लैब में किए गए परीक्षण के दौरान जब कैंसर के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवा 'JS07' का इस्तेमाल सोडियम फॉस्फेट के साथ किया गया तो इसका असर
50 गुना तक बढ़ गया. सैडलर ने कहा, 'JS07 का जब गर्भाशय की कैंसरग्रस्त कोशिकाओं पर नए केमिकल के
साथ परीक्षण किया गया तो यह बेहद प्रभावी साबित हुआ.
वैज्ञानिक समुदायों ने अपने गहन परिक्षण व शोध में पाया कि चीटियों में पाये जाने वाला फॉर्मिक अम्ल का प्रभाव सीधे स्टैम सैल्स याने नाभी के अन्दर की सतह पर होना चाहिये अन्यथा प्रभाव नही होगा इसीलिये कैंसर के उपचार में अन्ट उपचार, एंव एपिस ट्रीटमेन्ट में चीटियों या ऐपिस को नेवल की सतह पर ही कटाने की प्रक्रिया सम्पन्न कराई जाती है ।
'कैंसर से बचाने वाले नौ खाद्य पदार्थों के बारे में!
वैज्ञानिक समुदायों ने अपने गहन परिक्षण व शोध में पाया कि चीटियों में पाये जाने वाला फॉर्मिक अम्ल का प्रभाव सीधे स्टैम सैल्स याने नाभी के अन्दर की सतह पर होना चाहिये अन्यथा प्रभाव नही होगा इसीलिये कैंसर के उपचार में अन्ट उपचार, एंव एपिस ट्रीटमेन्ट में चीटियों या ऐपिस को नेवल की सतह पर ही कटाने की प्रक्रिया सम्पन्न कराई जाती है ।
1. लहसुन और प्याजः
लहसुन और प्याज में मौजूद सल्फर कंपाउंड बड़ी आंत, स्तन, फेफड़े की कैंसर कोशिकाओं को मार देते हैं. लहसुन ब्लड
प्रेशर को भी नियंत्रित करता है. यह इंसुलिन उत्पादन को कम करके शरीर में ट्यूमर
नहीं होने देता.
02. सब्ज़ियां : फूलगोभी
और ब्रोकोली शरीर में दो ताकतवर कैंसर रोधी अणु होते हैं. ये दोनों डिटोक्सीफिकेशन
एंजाइम के उत्पादन को बढ़ाते हैं, जो कैंसर की कोशिकाओं
को मारते हैं और ट्यूमर को बढ़ने से रोकते हैं. और ये फेफड़े, प्रोस्टेट, मूत्राशय और पेट के
कैंसर के जोखिम को कम करने के लिए भी जाने जाते हैं.
03. अदरक : ताजा अदरक में
कैंसर की कोशिकाओं से लड़ने वाले कुछ खास गुण होते हैं. और ट्यूमर की कोशिकाओं को
रोकने के लिए मदद करते हैं. अदरक का अर्क कीमोथेरेपी या रेडियोथेरेपी से होने वाली
परेशानी को भी कम कर सकता है.
04. हल्दी : यह सबसे
शक्तिशाली प्राकृतिक कैंसर रोधी है. यह कैंसर कोशिका को मारकर ट्यूमर को बढ़ने से
रोकती है और साथ ही कीमोथेरेपी का असर बढ़ाती है. काली मिर्च के साथ तेल में मिलाने
पर हल्दी और भी ज्यादा असरकारी हो जाती है.
05. पपीता, कीनू और संतरे : ये फल विटामिन और ऐसे तत्वों से भरपूर
होते हैं जो लीवर में पाए जाने वाले कार्सिनोजन को अपने आप खत्म हो जाने के लिए
मजबूर करते हैं. कीनू और उसके छिल्के में फ्लेवनोइड्स और नोबिलेटिन नामक तत्व होते
हैं जिसमें कैंसर कोशिकाओं को रोकने की क्षमता है.
06. गाजर, आम और कद्दू : अल्फा और बीटा नामक कैरोटीन्स कैंसर को
ख़त्म करने वाले शक्तिशाली कारक के रूप में जाने जाते हैं. ये तीनों फल गर्भाशय, मूत्राशय, पेट और स्तन कैंसर
सहित कई प्रकार के कैंसर की रोकथाम में असरदार हैं.
07. अंगूर : ये
एंथोसायनिन और पुलीफेनल्स की मदद से शरीर में कैंसर के कणों का उत्पादन कम करने
में अहम रोल अदा करते हैं.
08. टमाटर और तरबूज : ये
लाइकोपीन का समृद्ध स्रोत हैं, जिसे एक बहुत मजबूत
एंटीऑक्सीडेंट माना जाता है. यह सेलुलर क्षति से सुरक्षा प्रदान करता है. एक
सप्ताह के दौरान टमाटर को भोजन के दसवें भाग के रूप में खाने से प्रोस्टेट कैंसर
का खतरा लगभग 18 फीसदी कम हो जाता है.
09. फलियां और दाल : दाल
और फलियां प्रोटीन का एक समृद्ध स्रोत होने के अलावा फाइबर और फोलेट प्रदान करते
हैं जो पैनक्रियाज़ के कैंसर के खतरे को कम कर सकते हैं. फलियां में प्रतिरोधी
स्टार्च होता है जो बड़ी आंत की कोशिकाओं के स्वास्थ्य में सुधार करते हैं.
खाने का स्वाद बढ़ाने वाला या फिर
सर्दी-जुकाम और गले में दर्द से राहत दिलाने वाला अदरक। इन सभी के अलावा चेहरे की
झुर्रियों से निजात दिलाकर कसाव लाने वाला अदरक।
अदरक के ऐसे ही कई फायदे हैं जो
हमारे घरेलू और आयुर्वेदिक नुस्खों के रूप में जीवन का अभिन्न अंग है। लेकिन हाल
ही में अदरक के एक और गुण के बारे में पता चला है, जो आपके लिए बेहद फादेमंद हो सकता है।
कैंसर कोशिकाओं पर अदरक के प्रभाव को देखने के लिए किए गए शोध में यह पाया गया है, कि इसमें कैंसर रोधी गुण मौजूद हैं, जो खास तौर से महिलाओं में होने वाले स्तन कैंसर और गर्भाशय के कैंसर से बचाने में कारगर साबित होते हैं।
कैंसर कोशिकाओं पर अदरक के प्रभाव को देखने के लिए किए गए शोध में यह पाया गया है, कि इसमें कैंसर रोधी गुण मौजूद हैं, जो खास तौर से महिलाओं में होने वाले स्तन कैंसर और गर्भाशय के कैंसर से बचाने में कारगर साबित होते हैं।
यह शरीर में कैंसर पैदा करने वाली
कोशिकाओं को ब्लॉक करता है और कैंसर को फैलने से रोकता है।
इस शोध में शोधकर्ताओं द्वारा इस बात पर विशेष ध्यान दिया गया कि कैंसर के इलाज के तौर पर अपनाई जाने वाली कीमो थैरेपी, मरीज को राहत पहुंचाने के बजाए उसके पूरे शरीर को नुकसान पहुंचाती है।
इस शोध में शोधकर्ताओं द्वारा इस बात पर विशेष ध्यान दिया गया कि कैंसर के इलाज के तौर पर अपनाई जाने वाली कीमो थैरेपी, मरीज को राहत पहुंचाने के बजाए उसके पूरे शरीर को नुकसान पहुंचाती है।
वहीं कैंसर की दवा के रूप में
अदरक केवल कैंसर जनित अंगों या कोशिकाओं को ही प्रभावित करता है और मरीज के पूरे
शरीर को राहत पहुंचाता है। इस शोध के परिणाम बताते हैं कि प्रतिदिन अपनी
डाइट में किसी भी तरह से अदरक को शामिल कर हम कैंसर को जड़ से समाप्त कर सकते हैं।
स्तन कैंसर के मामले
में अदरक का सेवन ट्यूमर को बढऩे से रोकता है और कैंसर बनने की संभावनाओं को कम
करता है। शोधकर्ताओं के अनुसार अदरक में पाया जाने वाला कैंसर रोधी तत्व
क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को भी पुन: संरक्षित करने में सक्षम रहा, वह भी कीमो से 10 हजार गुना बेहतर और मजबूत तरीके से।
हालांकि कैंसर कोशिका
पर किए गए इस शोध के बाद शोधकर्ताओं का मानना है कि, असल में मानव कोशिका पर यह कितना
प्रभावकारी सिद्ध होगा यह देखने वाल बात होगी। फिलहाल यह तो तय है, कि अदरक में कैंसर को खत्म करने और उससे
बचने के बेहतरीन गुण मौजूद हैं।
वाशिंगटन: दिमाग के कैंसर के उपचार में बिच्छू का जहर कारगर साबित होगा।
क्योंकि बिच्छू के जहर से बने 'ट्यूमर पेंट' के मानव जांच के लिए अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) से
वैज्ञानिकों को इसकी इज्जाजत दे दी है। जांच के प्रथम दौर में ट्यूमर पेंट का
उपयोग ग्लिओमा (मस्तिष्क या मेरुदंड का ट्यूमर) से पीडि़त 21 मरीजों पर होगा। इस
उत्पादक पदार्थ का निर्माण अमेरिका की एक ब्लेज बायोसाइंस कंपनी ने किया है।
कैंसर कोशिकाओं की उच्च गुणवत्ता वाली फोटो लेने में ट्यूमर पेंट
मदद करेगा, जिससे
न केवल कैंसर का बहुत अधिक प्रकार से नष्ट हो सकता है। बल्कि कैंसर की संपूर्ण और
सबसे बढिय़ा सर्जरी भी संभव हो सकती है।
ट्यूमर पेंट का विकास इजरायल के भयंकर बिच्छुओं के विष से होता है।
सिएटल चिल्ड्रंस अस्पताल में दिमाग कैंसर के विशेषज्ञ जिम ओस्लेन ने बताया है कि
ब्लड-ब्रेन बैरियर कि वजह से कोई भी अणु को दिमाग तक पहुंचाना बहुत कठिन कार्य है।
इसी को मध्यनजर रखते हुए इसके विकास के लिए बिच्छू के विष का विचार किया है।
चींटीयों
में कौन सा विष पाया जाता है क्या यह कैंसर के उपचार में कारगर है
चींटी के विष में पाये जाने वाला रसायन
फॉर्मिक अम्ल
मुक्त
ज्ञानकोश विकिपीडिया से
फॉर्मिक अम्ल की संरचना
फॉर्मिक
अम्ल एक कार्बनिक यौगिक है। यह लाल चींटियों, शहद की मक्खियों, बिच्छू तथा बर्रों के डंकों में पाया जाता है। इन कीड़ों
के काटने या डंक मारने पर थोड़ा अम्ल शरीर में प्रविष्ट हो जाता है, जिससे वह
स्थान फूल जाता है और दर्द करने लगता है। पहले पहल लाल चींटयों (लैटिन नाम 'फॉर्मिका') को
पानी के साथ गरम करके, उनका सत खींचने पर उसमें फार्मिक अम्ल
मिला पाया गया। इसीलिए अम्ल का नाम 'फॉर्मिक' पड़ा।
गुणधर्म[
यह
एकक्षारकी वसा अम्लों की श्रेणी का प्रथम सदस्य है। दूसरे वसा-अम्लों के विपरीत
फॉर्मिक अम्ल तथा फॉमेंट तेज अपचायक होते हैं और अपचयन गुण में ये ऐल्डिहाइड के
समान होते हैं। यह रजत लवणों को रजत में, फेहलिंग विलयन को लाल क्यूप्रस
ऑक्साइड में तथा मरक्यूरिक क्लोराइड को मर्करी में अपचयित कर देता है। इसका सूत्र HCOOH है।
इसे मेथिल ऐल्कोहॉल या फॉर्मैंल्डिहाइड के उपचयन द्वारा, ऑक्सैलिक
अम्ल को शीघ्रता से गरम करके अथवा ऑक्सैलिक अम्ल को ग्लिसरीन के साथ १०० से ११०
डिग्री सें. तक गरम करके प्राप्त किया जाता है।
निर्माण
अजल
फार्मिक अम्ल बनाने के लिए, लेड या ताम्र फॉमेंट के ऊपर १३०
डिग्री सें. पर हाइड्रोजन सल्फाइड प्रवाहित किया जाता है। सांद्र फॉर्मिक अम्ल को सोडियम फार्मेट के
(भार के) ९०% फॉर्मिक अम्ल में बने विलयन को सांद्र सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ आसुत करके बनाया जाता है। यह
तीव्र गंधवाला रंगहीन द्रव है। यह किसी भी अनुपात में पानी, एल्कोहॉल तथा ईथर में
मिश्र्य (mixable) है। इसका क्वथनांक १००.८ डिग्री सें. है। त्वचा पर गिरने पर बहुत जलन होती है और फफोले बन जाते हैं।
https://battely2.blogspot.com
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